
फिल्म पीकू रिलीज हो गई है और लोगो को काफी पंसद भी आ रही है जानकारी के मुताबिक शूजित सरकार की हाल ही में रिलीज हुई फिल्म पीकू को दर्शकों ने काफी पसंद किया। फिल्म में अमिताभ बच्चन, दीपिका पादुकोण व इरफान खान का अभिनय वाकई काबिलेतारीफ है। यह फिल्म 70-80 साल के एक बूढ़े को हुए कब्ज और उससे उपजे ह्यूमर के इर्द-गिर्द घूमती है और इसी वजह से फिल्म में उपजा हास्य इस फिल्म का एक अहम पहलू जरूर है। फिल्म में बहुत कुछ ऐसा हैं जो आपके दिल को छू कर आपको गुदगुदाऐगा, हंसाएगा, रुलाएगा। यह हास्य हमारी-आपकी आम जिंदगी से लिया गया लगता है, जिसमें दिखावे की गुंजाइश न के बराबर दिखती है, वरना एक बूढ़े की जिंदगी और उसे होने वाले कब्ज में किसी को क्या दिलचस्पी होगी। लेकिन जूही चतुर्वेदी ने इसे बेहद करीने से दिलचस्प बनाया है।
ये कहानी है दिल्ली के चितरंजन पार्क में रहने वाले एक बंगभाषी परिवार भास्कर बनर्जी उर्फ दादू (अमिताभ बच्चन) और उनकी बेटी पीकू (दीपिका पादुकोण) की। सत्तर के हो चुके दादू को कब्ज की जबरदस्त शिकायत है। कब्ज दूर करने के लिए वे होमियोपैथी, आयुर्वेद, एलोपैथी सहित न जाने किस-किस के उपाय कर चुके है, लेकिन कब्ज है कि उनके पेट में खूंटा गाड़े बैठा है, जाता ही नही। अब दादू को एक बीमारी हो तो पीकू संभाल भी ले, लेकिन यहां तो बीमारियों का पूरा पिटारा है, पिटारा। हालांकि दादू की मेडिकल रिपोर्ट सामान्य आती है, लेकिन हर समय उन्हें यह लगता रहता है कि उन्हें कुछ हो न जाए। दादू इसी डर से पीकू को बस अपने में ही उलझाए रखते है। इससे पीकू के ऑफिस का काम-काज तो बाधित होता ही है, साथ ही उसकी शादी भी नहीं हो पा रही है।
तीस पार कर रही पीकू के रिश्ते की जहां-जहां बात चलती है, दादू उसमें अड़ंगा डाल देते है, ये कह कर कि पीकू शादी करके क्या करेगी, शादी के लिए कोई वजह तो होनी चाहिए, जो उसके पास नहीं है। हमेशा खिटपिट-खिटपिट करने वाले दादू एक दिन कोलकाता जाने की ठान लेते है और वो भी कार से। काफी ना-नुकुर के बाद पीकू को इस झेलाऊ रोड-ट्रिप के लिए राजी होना पड़ता है। राणा चौधरी (इरफान) की टैक्सी लेकर दादू, पीकू और उनका सेवक बुधन कोलकाता रवाना होते है। इस दौरान दादू का कब्ज कैसे-कैसे रंग बदलता है, ये आप फिल्म में देखें तो बेहतर है।
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