
Pakistan On Trump Victory: डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद पाकिस्तान की सरकार के सामने असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है। पाकिस्तान ने इस मौके पर अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की उम्मीद जताई, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी सामने आया है कि पाकिस्तान अमेरिका और चीन के बीच संतुलन कैसे बनाए रखेगा। दोनों देशों के साथ पाकिस्तान के रिश्ते अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और इस संतुलन को बनाए रखना पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
अमेरिका-चीन संबंधों में संतुलन बनाए रखने की चुनौती
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा कि पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपने पुराने रिश्तों को गैर-हस्तक्षेप पर आधारित रखना चाहता है। उनका मानना है कि ट्रंप के नेतृत्व में पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते और मजबूत होंगे। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान और चीन के रिश्ते किसी अन्य देश से प्रभावित नहीं होंगे और उन्हें हर स्थिति में स्थिर बनाए रखा जाएगा।
ट्रंप की चीन विरोधी नीति से पाकिस्तान की चिंताएं
ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका और चीन के रिश्ते तनावपूर्ण रहे थे। ट्रंप ने चीन को एक रणनीतिक प्रतिस्पर्धी के रूप में देखा था। पाकिस्तान और चीन के गहरे रिश्ते को ध्यान में रखते हुए, ट्रंप की वापसी से पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ गई हैं। पाकिस्तान के लिए यह चुनौतीपूर्ण होगा कि वह अमेरिका और चीन के बीच संतुलन बनाए रखे, खासकर जब अमेरिका चीन पर दबाव बनाए रखने की नीति को जारी रखने की संभावना जता रहा है।
इमरान खान की रिहाई पर PTI की उम्मीदें
इस बीच, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के अमेरिकी विंग ने ट्रंप की जीत पर इमरान खान की रिहाई की उम्मीद जताई है। हालांकि, मुमताज जहरा बलोच ने इन अटकलों को अफवाह करार दिया और कहा कि पाकिस्तान-अमेरिका संबंध आपसी सम्मान और विश्वास पर आधारित होंगे। उनका कहना है कि इस प्रकार की उम्मीदों से दोनों देशों के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
पाकिस्तान के लिए कूटनीतिक चुनौतियां
विशेषज्ञों के अनुसार, ट्रंप का दूसरा कार्यकाल पाकिस्तान के लिए कूटनीतिक चुनौतियां लेकर आएगा। पाकिस्तान को यह निर्णय लेना होगा कि वह चीन के साथ अपने रिश्ते बनाए रखते हुए अमेरिका के साथ घनिष्ठता कैसे स्थापित कर सकता है। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण पाकिस्तान के लिए किसी एक पक्ष का खुलकर समर्थन करना जोखिम भरा हो सकता है। ऐसे में पाकिस्तान को अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता होगी, ताकि वह दोनों महाशक्तियों के बीच संतुलन बनाए रख सके।
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