Israel And Hamas War: व्लादिमीर पुतिन का मास्टर स्ट्रोक, इजरायल के बहाने 50 देशों को क्यों साथ ला रहा रूस?

Israel And Hamas War: व्लादिमीर पुतिन का मास्टर स्ट्रोक, इजरायल के बहाने 50 देशों को क्यों साथ ला रहा रूस?

Israel And Hamas Warइजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध में रूस तटस्थ दिखने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अब तक उसका रुख इजराइल के खिलाफ ही रहा है। वह लगातार गाजा पर जारी इजरायली हमलों को रोकने की अपील कर रहे हैं।इसके अलावा वह संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्ताव पर भी इजराइल के खिलाफ थे। इस बीच वैश्विक राजनीति के जानकारों के बीच इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि रूस का रुख ऐसा क्यों है? दरअसल, माना जा रहा है कि यूक्रेन में फंसे रूस को पश्चिमी देशों के खिलाफ एक गुट में शामिल होने का मौका मिल गया है। इजराइल के विरोध में रूस ईरान और तुर्की जैसे देशों के साथ शामिल हो गया है।

दरअसल, यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में ईरान ने रूस को ड्रोन और हथियार भी दिए थे। ऐसे में अब रूस भी ईरान के साथ नजर आ रहा है, जो हमास और हिजबुल्लाह का समर्थक माना जाता है। इतना ही नहीं ईरान ने भी इस युद्ध में कूदने की धमकी दी है।रूस को लगता है कि इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध ने दुनिया को दो ध्रुवों में बांट दिया है और वह इसका फायदा यूक्रेन के मुद्दे पर उठा सकता है। रूस ने इजराइल को गाजा पट्टी पर कब्जा नहीं करने की चेतावनी दी है। ऐसा करना द्वितीय विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी द्वारा लेनिनग्राद पर कब्ज़ा करने जैसा होगा।

पुतिन ने यहां तक ​​कहा था कि रूस इस युद्ध में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारी मंशा पर किसी को शक नहीं होगा और सभी को हम पर भरोसा है। हालाँकि, दूसरी ओर, रूस ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें नागरिकों की हत्याओं की निंदा की गई थी। लेकिन हमास का कोई ज़िक्र नहीं था। उनके इसी रुख पर सवाल खड़े हो गए हैं। चीन ने भी रूस के प्रस्ताव का समर्थन किया। इस तरह रूस ने इजरायल के पक्ष में और अपने पक्ष में ध्रुवीकरण का इस्तेमाल करने की कोशिश की है।

रूस की नजर 50 देशों पर है, चीन भी मजबूती से उसके साथ है

इस मामले में चीन, अरब देश, पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत बड़ी संख्या में मुस्लिम देश एकजुट हैं। ऐसे में यूक्रेन युद्ध से किनारे कर दिए गए रूस को लगता है कि वह एक साथ 50 से ज्यादा देशों में अपनी पैठ बना सकता है।यही वजह है कि वह भले ही इजराइल के बहुत खिलाफ नहीं दिख रहे हैं, लेकिन फिलिस्तीन की बात जरूर कर रहे हैं। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि जब जो बिडेन, ऋषि सुनक और ओलाफ स्कोल्ज़ जैसे नेताओं ने इज़राइल का दौरा किया, तो पुतिन ने नौ दिन बाद बेंजामिन नेतन्याहू को फोन किया।

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