सूडान में RSF लड़ाकों का खूनी हमला, ऊंटों पर चढ़कर 200 लोगों को उतार दिया मौत के घाट

सूडान में RSF लड़ाकों का खूनी हमला, ऊंटों पर चढ़कर 200 लोगों को उतार दिया मौत के घाट

Sudan Violence Update: सूडान के पश्चिमी दारफुर क्षेत्र में तेजी से बढ़ते सिविल वॉर ने एक नया खौफनाक अध्याय जोड़ दिया है। रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (RSF) के लड़ाकों पर आरोप है कि उन्होंने अल-फाशर शहर पर कब्जे के बाद सैकड़ों बेगुनाहों की हत्या कर दी, जिसमें ऊंटों पर सवार होकर हमला कर लगभग 200लोगों को मौत के घाट उतार दिया। एक चश्मदीद ने रॉयटर्स को दिए इंटरव्यू में बताया कि RSF के ये हमलावर पुराने स्कूल के दोस्तों को भी नहीं बख्शे। सैटेलाइट इमेजरी और वीडियो सबूतों से इस नरसंहार की पुष्टि हो रही है, जो सूडान की 18महीने पुरानी जंग को और खूनी बना रहा है।

सूडान में मौत का तांडव

अल-फाशर पर RSF का कब्जा 26-27अक्टूबर को हुआ, जब सुडानी आर्म्ड फोर्सेज (SAF) को पीछे हटना पड़ा। शहर के बाहर एक जलाशय के पास ऊंटों पर सवार RSF लड़ाकों ने सैकड़ों पुरुषों को घेर लिया। चश्मदीद अलखैर इस्माइल ने वीडियो इंटरव्यू में बताया 'हम 300लोग थे जो शहर से भाग रहे थे। RSF के वे लोग ऊंटों पर आकर हमें रोक लिया। उन्होंने 200के करीब पुरुषों को अलग किया, अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया और फिर गोलीबारी शुरू कर दी। एक लड़ाके ने मुझे पहचान लिया वह मेरा पुराना स्कूल का दोस्त था। उसने कहा 'इसे मत मारो,' वरना मुझे भी मार देते। बाकी सब—मेरे दोस्त और सभी को मार डाला।' इस्माइल ने बताया कि बचे लोग रैनसम (5-30मिलियन सूडानी पाउंड) देकर ही बच पाए। 

यह हमला शहर के सऊदी अस्पताल और यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल के पास भी हुआ, जहां सैटेलाइट तस्वीरों में लाशों के ढेर और खून से सनी जमीन साफ दिख रही है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुसार, अस्पताल में 460से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें मरीज, उनके परिजन और स्टाफ शामिल थे। सूडान डॉक्टर्स नेटवर्क ने इसे "कोल्ड-ब्लडेड किलिंग" बताया।

RSF का अतीत

RSF, जिसकी कमान जनरल मोहम्मद हमदान दागलो (हेमेद्ती) के पास है, दारफुर के पुराने जंजावीद मिलिशिया का ही रूप है। 2000 के दशक में जंजावीद ने गैर-अरब जातियों पर नरसंहार किया था, जिसमें 2 लाख से ज्यादा मौतें हुईं। अप्रैल 2023 से SAF और RSF के बीच सत्ता की लड़ाई ने पूरे देश को तहस-नहस कर दिया है। अल-फाशर, जो दारफुर का आखिरी बड़ा शहर था, 18 महीने के घेराबंदी के बाद गिरा। RSF ने इसे मर्सनरीज से मुक्ति बताया, लेकिन चश्मदीदों के अनुसार, यह जातीय सफाई का अभियान था।

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