SCO-BRICS की नई ताकत से अमेरिकी दादागीरी पर लगेगी लगाम, मोदी-पुतिन-जिनपिंग की दोस्ती बदलेगी दुनिया

SCO-BRICS की नई ताकत से अमेरिकी दादागीरी पर लगेगी लगाम, मोदी-पुतिन-जिनपिंग की दोस्ती बदलेगी दुनिया

Modi-Putin-Xi Friendship: चीन के तियानजीन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को साथ में देखा गया। यह तीनों तिकड़ी न केवल आपसी सहयोग को मजबूत कर रही है, बल्कि वैश्विक दक्षिण (Global South) के देशों को एकजुट कर एक नई विश्व व्यवस्था की नींव भी रख रही है। जिसे अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने के रुप में माना जा रहा है।

मोदी-पुतिन-जिनपिंग की दोस्ती

बता दें, 2025 में तियानजिन (चीन) में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन ने वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया। इस सम्मेलन में मोदी, पुतिन और जिनपिंग की मुलाकातों ने न केवल आपसी दोस्ती को प्रदर्शित किया, बल्कि अमेरिकी नीतियों, विशेष रूप से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आक्रामक टैरिफ और व्यापारिक प्रतिबंधों, के खिलाफ एकजुटता का संदेश भी दिया। भारत और चीन पर लगाए गए 50% और 30% टैरिफ ने इन देशों को और करीब लाया है, जिससे वे वैकल्पिक आर्थिक और रणनीतिक रास्तों की तलाश कर रहे हैं।

मालूम हो कि भारत और रूस की दोस्ती दशकों पुरानी है, जो सोवियत काल से चली आ रही है। दूसरी ओर, भारत-चीन संबंधों में 2020 की गलवान झड़प के बाद तनाव रहा, लेकिन हाल के सालों में दोनों देशों ने सीमा विवादों को सुलझाने और व्यापारिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में कदम उठाए हैं। SCO शिखर सम्मेलन में मोदी और जिनपिंग की दो द्विपक्षीय मुलाकातें, साथ ही पुतिन के साथ उनकी गर्मजोशी भरी बातचीत, इस बात का संकेत हैं कि ये देश मिलकर एक नई वैश्विक व्यवस्था की दिशा में काम कर रहे हैं।

SCO और BRICS: वैश्विक दक्षिण की नई ताकत

शंघाई सहयोग संगठन (SCO):

SCO, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देश शामिल हैं, अब 10 स्थायी सदस्यों और 16 संवाद व पर्यवेक्षक देशों के साथ एक विशाल मंच बन चुका है। इस संगठन की संयुक्त अर्थव्यवस्था 30 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुंच रही है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसका बढ़ता प्रभाव दर्शाती है। SCO का उद्देश्य न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग को बढ़ावा देना है, बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाली संस्थाओं, जैसे IMF और विश्व बैंक, के विकल्प के रूप में उभरना भी है।

BRICS:

BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) अब एक 20 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था वाला संगठन है। हाल के सालों में इसके विस्तार और नए सदस्यों (जैसे संयुक्त अरब अमीरात, ईरान और मिस्र) के शामिल होने से इसकी वैश्विक पहुंच बढ़ी है। BRICS का न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और कंटिंजेंट रिजर्व अरेंजमेंट (CRA) जैसे प्रयास वैश्विक दक्षिण के देशों को वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। अगर BRICS देश अपनी साझा मुद्रा या वैकल्पिक वित्तीय प्रणाली विकसित कर लेते हैं, तो यह अमेरिकी डॉलर के वैश्विक प्रभुत्व के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

भारत-चीन-रूस की दोस्ती से क्या बदलेगा?

ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीतियों ने भारत, चीन और अन्य देशों को आर्थिक दबाव में डाला है। SCO और BRICS के मंच इन देशों को एकजुट होकर वैकल्पिक व्यापारिक रास्ते तलाशने का अवसर दे रहे हैं। इसके अलावा SCO और BRICS का उदय एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर इशारा करता है, जहां अमेरिका का एकध्रुवीय वर्चस्व कमजोर पड़ सकता है। इन संगठनों का लक्ष्य वैश्विक दक्षिण के देशों को आर्थिक और रणनीतिक रूप से सशक्त करना है, ताकि वे पश्चिमी देशों के दबाव के बिना अपने हितों को प्राथमिकता दे सकें।

रूस से भारत की तेल खरीद और रक्षा साझेदारी अमेरिकी दबाव के बावजूद मजबूत बनी हुई है। SCO शिखर सम्मेलन में मोदी और पुतिन की एक ही कार में साझा यात्रा ने इस दोस्ती को और मजबूत किया। साथ ही, भारत और चीन के बीच सीमा विवादों पर समझौते और कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली जैसे कदम दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की दिशा में अहम हैं।

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