कांग्रेस की तैयारी किसपर पड़ेगी भार ?

कांग्रेस की तैयारी किसपर पड़ेगी भार ?

चुनाव को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है। जनता के लिए चुनाव वोट की ताकत दिखाने का मौका होता है, तो वहीं सियासी दलों के लिए खुद को साबित करने का सत्ता पक्ष और विपक्ष में बैठे दलों के लिए चुनाव, चुनौती लेकर आता है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव भी बिलकुल इसी तर्ज़ पर आगे बढ़ता दिख रहा है। 2014में 47सीट जीतने वाली बीजेपी ने इस बार लक्ष्य 75प्लस को अपने लिए चुनौती बनाया है, तो वहीं विपक्षी दलों के लिए अपनी खोई हुई सियासी जमीन को वापस पाना बड़ी चुनौती होगी।बड़ी चुनौती इस लिए भी क्योंकि चुनावी रण शुरू होने से पहले कई धुरंधरों ने दूसरे का दामन थामने के लिए, अपनों का साथ छोड़ दिया है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कभी भी हो सकता है। जैसे जैसे चुनवी घड़ियां नजदीक आ रही हैं, वैसे वैसे सियासी उथल पुथल भी तेज़ हो रही है। आया राम- गया राम का सिलसिला जारी है, सत्तारुढ़ बीजेपी अपने किले को मजबूत करने के साथ जनता के बीच अपनी मौजूदगी बनाए हुए है। तो वहीं विपक्षी दल भी अब अपने चुनाव अभियान में जुट गए हैं। खासकर हरियाणा कांग्रेस, 28सदस्य प्रदेश चुनाव समिति और 46सदस्य चुनाव प्रचार समिति का गठन करने के बाद, पार्टी ने स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया है। छह सदस्यीय स्क्रीनिंग कमेटी की कमान वरिष्ठ नेता मधुसूदन मिस्त्री को दी गई है। तो वहीं वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद,  प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा और सीएलपी लीडर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी कमेटी में रखा गया है। वहीं पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए पार्टी नेताओं ने पसीना बहाना शुरू कर दिया है।

कार्यकर्ता सम्मेलन के जरिए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस मिशन में जुट गए हैं। वहीं हरियाणा कांग्रेस को मजबूत करने के लिए, सियासत के कुछ और मंझे हुए खिलाड़ी हाथ को थामने वाले हैं। जो कभी अपने थे आज वो पराए हैं, और जो कल तक धुर विरोधी थे, वो अब सहयोगी हैं। ये बात मौजूदा वक्त में इनेलो और कांग्रेस की राजनीति पर बिलकुल सटीक बैठती है। इनेलो के सबसे करीबी रहे अशोक अरोड़ा, जो करीब 40साल से ज्यादा अर्से से इनेलो के साथ थे, वही अशोक अरोड़ा इनेलो का चशमा उतारने के बाद कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं।

चुनाव के वक्त आया राम, गया राम की राजनीति कोई नई बात नहीं है। कई बार ये उलटफेर सियासी समीकरणों को साधने में निर्णायक साबित हुआ है तो कई बार इसके दुष्परिणाम भी पार्टियों को भुगतने पड़े हैं। देखने वाली बात ये होगी कि इस बार आया राम गया राम का ये फार्मूला प्रदेश के सियासी दलों के लिए कितना फायदेमंद साबित होता है।

 

 

 

 

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