ट्रंप के नोबेल शांति पुरस्कार नॉमिनेशन से PAK में मचा हंगामा, विपक्ष बोला- वापस लो पीस प्राइज

Nobel Peace Prize Nomination: पाकिस्तान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट करने पर विवाद हो गया है। पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की ट्रंप के साथ व्हाइट हाउस में हुई मुलाकात और डीलक्स लंच के बाद यह कदम उठाया गया। जिसे विपक्ष ने "शर्मनाक" का नाम दिया है। विपक्षी नेताओं और नागरिकों ने सरकार से नॉमिनेशन वापस लेने की मांग की है। खासकर तब जब ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले किए हैं।
नोबेल नॉमिनेशन का विवाद
पाकिस्तान सरकार ने 21 जून को आधिकारिक तौर पर ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया। जिसमें भारत-पाकिस्तान के बीच 2025 के सैन्य तनाव को कम करने में उनकी कथित भूमिका को आधार बताया गया। उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने नॉर्वे की नोबेल कमेटी को पत्र भेजा। हालांकि भारत ने यह साफ कर दिया कि युद्धविराम द्विपक्षीय सैन्य संवाद का परिणाम था। जिसमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं थी।
ट्रंप और मुनीर की 18 जून को व्हाइट हाउस में मुलाकात ने इस फैसले को और हवा दी। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता अन्ना केली ने कहा कि मुनीर को लंच के लिए इसलिए बुलाया गया क्योंकि उन्होंने ट्रंप को नोबेल के लिए नामित करने की सिफारिश की थी। इस मुलाकात को पाकिस्तान में "चाटुकारिता" और "गरिमा की हानि" के रूप में देखा जा रहा है।
विपक्ष का तीखा हमला
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI-F) के नेता मौलाना फजलुर रहमान ने कहा "ट्रंप का शांति का दावा झूठा है। ईरान पर हमले और गाजा में इजरायल के समर्थन के बाद उन्हें शांति पुरस्कार के लिए नामित करना बेतुका है।" पूर्व सीनेटर मुशाहिद हुसैन ने सरकार से नॉमिनेशन रद्द करने की मांग की और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के नेता अली मोहम्मद खान ने इसे पाकिस्तान की छवि को नुकसान बताया।
ईरान हमले ने बढ़ाया तनाव
22 जून को अमेरिका द्वारा ईरान के फोर्दो, इस्फहान और नतांज परमाणु ठिकानों पर हमले ने विवाद को और गहरा किया। पाकिस्तान ने इन हमलों की निंदा की और ईरान के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया। विपक्ष ने सवाल उठाया कि क्या मुनीर और ट्रंप की मुलाकात का मकसद ईरान के खिलाफ रणनीति बनाना था। शहबाज शरीफ सरकार ने अभी तक आलोचनाओं का जवाब नहीं दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम पाकिस्तान की अमेरिका के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिश है लेकिन यह कूटनीतिक रूप से उल्टा पड़ सकता है।
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