अयोध्या में पूरा हुआ ऐतिहासिक सूर्य तिलक, जानें इस ऐतिहासिक क्षण के पीछे की वैज्ञानिक प्रक्रिया

अयोध्या में पूरा हुआ ऐतिहासिक सूर्य तिलक, जानें इस ऐतिहासिक क्षण के पीछे की वैज्ञानिक प्रक्रिया

Surya Tilak: रविवार, 6 अप्रैल को पूरे देश में रामनवमी का पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। अयोध्या में इस पावन अवसर पर ऐतिहासिक पल उस समय घटित हुआ, जब दोपहर 12 बजे रामलला के मस्तक पर सूर्य तिलक किया गया। यह क्षण पूरे देशवासियों के लिए आस्था और गर्व का प्रतीक बना।

बता दें कि, सूर्य तिलक को देखने के लिए अयोध्या में लाखों श्रद्धालु जुटे है। प्रशासन के अनुसार, लगभग 20से 30लाख लोगों ने आज रामलला के दर्शन करेंगे। भीड़ को संभालने के लिए शहर को कई जोन और सेक्टर में बांटा गया। सुरक्षा और यातायात की व्यवस्था को लेकर प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहा।

क्या होता है सूर्य तिलक और क्यों है यह खास?

सूर्य तिलक एक प्राचीन धार्मिक परंपरा है, जो भगवान राम के सूर्यवंशी वंश से जुड़ी है। मान्यता है कि त्रेता युग में जन्मे भगवान श्रीराम को सूर्य देव तिलक करते हैं। रामनवमी के दिन सूर्य की सीधी किरणें रामलला के ललाट पर पड़ती हैं, जिसे सूर्य तिलक कहा जाता है। यह परंपरा श्रद्धा, भक्ति और धार्मिक चेतना का प्रतीक है।

कैसे हुआ सूर्य तिलक? जानिए विज्ञान से जुड़ी तकनीक

राम मंदिर में सूर्य तिलक की परंपरा को साकार करने के लिए वैज्ञानिक प्रणाली का सहारा लिया गया। मंदिर के निर्माण के समय ही इसमें तीन दर्पणों और पीतल की पाइपों की विशेष तकनीक को जोड़ा गया है।

- पहला दर्पण मंदिर के शिखर पर लगाया गया है।

- जैसे ही दोपहर 12बजे सूर्य की किरणें उस पर पड़ती हैं, वह उन्हें 90डिग्री पर परावर्तित कर एक पाइप के जरिए दूसरे दर्पण तक पहुंचाता है।

- फिर वहां से किरणें तीसरे दर्पण से होती हुई गर्भगृह में स्थित रामलला की मूर्ति के ललाट तक पहुंचती हैं।

संपन्न हुआ ऐतिहासिक क्षण, जुड़ी एक नई परंपरा

सूर्य तिलक का यह दृश्य न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से अद्वितीय रहा, बल्कि यह विज्ञान और श्रद्धा के अद्भुत मेल का उदाहरण भी बना। हजारों श्रद्धालुओं ने इस अलौकिक पल को निहारते हुए भावविभोर होकर भगवान राम की जयकार की।

यह आयोजन अब अयोध्या की धार्मिक पहचान का हिस्सा बन गया है। सूर्य तिलक की यह परंपरा आने वाले वर्षों में भी इसी भव्यता के साथ मनाई जाएगी।

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