
नई दिल्ली: पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक साक्षात्कार में दावा किया कि 1972 का शिमला समझौता अब "मृत दस्तावेज़" है और यह पूरी तरह समाप्त हो चुका है। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) को अब 1948 की तरह "युद्धविराम रेखा" माना जाएगा।
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि पाकिस्तान अब कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता के बजाय बहुपक्षीय या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाएगा। यह बयान पाहलगाम आतंकी हमले और भारत की ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में भारत-पाक तनाव के बीच आया है। हालांकि,पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने 6 जून 2025 को स्पष्ट किया कि शिमला समझौते सहित भारत के साथ किसी भी द्विपक्षीय समझौते को रद्द करने का कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है।
क्या है शिमला समझौता
शिमला समझौता, जो 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा हस्ताक्षरित हुआ था, दोनों देशों के बीच शांति और द्विपक्षीय वार्ता के लिए एक महत्वपूर्ण ढांचा है। इसके तहत LoC को परिभाषित किया गया और विवादों को द्विपक्षीय रूप से हल करने पर जोर दिया गया।
आसिफ के बयान से पाकिस्तान की रणनीति में बदलाव का संकेत मिलता है, लेकिन विदेश मंत्रालय की सफाई से लगता है कि यह आधिकारिक नीति नहीं है। कुछ भारतीय विश्लेषकों का मानना है कि यदि शिमला समझौता रद्द होता है, तो इससे भारत को चंब सेक्टर और PoK पर दावा मजबूत करने का मौका मिल सकता है, क्योंकि समझौते ने पाकिस्तान को चंब पर नियंत्रण की अनुमति दी थी।
यह स्थिति भारत-पाक संबंधों में तनाव को और बढ़ा सकती है, खासकर तब जब दोनों देश पहले ही पाहलगाम हमले और भारत के जवाबी हमलों के बाद तनावपूर्ण स्थिति में हैं।
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