डर के साये में पाकिस्तान...उड़ जाएगी रातों की नींद, भारत ब्रह्मोस के साथ मचाने वाला हैं खलबली

डर के साये में पाकिस्तान...उड़ जाएगी रातों की नींद, भारत ब्रह्मोस के साथ मचाने वाला हैं खलबली

National Security: भारत की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस ने एक बार फिर अपनी घातक क्षमता साबित कर दी है। हाल ही में लखनऊ की नई एकीकरण और परीक्षण सुविधा से पहली खेप के उत्पादन के साथ, भारतीय सेना को अब और मजबूत हथियार मिला है। यह विकास न केवल भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करता है, बल्कि पड़ोसी देश पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक चेतावनी भी है, जहां ब्रह्मोस की बढ़ी हुई रेंज से पूरा इलाका कवर हो जाता है।

भारत-रूस का सफल संयुक्त उद्यम

ब्रह्मोस मिसाइल का नाम ब्रह्मपुत्र नदी (भारत) और मॉस्कवा नदी (रूस) से प्रेरित है। यह भारत के डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) और रूस के NPO Mashinostroyenia के बीच 1998 में शुरू हुए संयुक्त उद्यम का परिणाम है। पहली सफल परीक्षण उड़ान 2001 में हुई थीऔर 2005 में भारतीय नौसेना में इसका शामिल होना शुरू हुआ। 2007 से भारतीय सेना ने इसे अपनाया, जबकि वायुसेना ने सुखोई-30एमकेआई विमानों से हवाई लॉन्च संस्करण को एकीकृत किया।

2025 तक, ब्रह्मोस को ब्लॉक-1 और एयर-लॉन्च्ड वेरिएंट के रूप में सेवा में रखा गया है, लेकिन अब एक्सटेंडेड रेंज वाले संस्करणों का दौर चल रहा है। मिसाइल की स्पीड मच 2.8 से 3.5 तक है, जो इसे दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाती है। यह 'फायर एंड फॉरगेट' तकनीक पर काम करती है, यानी एक बार लॉन्च होने के बाद इसे मैन्युअल कंट्रोल की जरूरत नहीं पड़ती।

उत्पादन में हुई बढ़ोतरी

इस साल ब्रह्मोस ने कई मील के पत्थर पार किए हैं। मार्च 2025 मेंडिफेंस एक्विजिशन काउंसिल (DAC) ने भारतीय सेना और वायुसेना के लिए लगभग 250 ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद को मंजूरी दी, जिसकी अनुमानित लागत 20,000 करोड़ रुपये (लगभग 2.4 अरब डॉलर) है। ये मिसाइलें 800 किलोमीटर तक की रेंज वाली हैं, जो पहले 290-500 किलोमीटर सीमित थीं। यह विस्तार मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम (MTCR) में भारत की सदस्यता के बाद संभव हुआ।

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