Bhagat Singh Birthday : भारत मां के सच्चे सपूत भगत सिंह ने कैसे ब्रिटिश हुकुमत की जड़े हिला दी थी, जानें

Bhagat Singh Birthday : भारत मां के सच्चे सपूत भगत सिंह ने कैसे ब्रिटिश हुकुमत की जड़े हिला दी थी, जानें

नई दिल्ली:  राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान, मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आजाद है. इस डायलॉग के सुनकर भारत के उस लाल की याद आती है. जिसने मजह 23 वर्ष की उम्र में देश की लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी. आज भारत के लाल शहीद-ए-आजम भगत की जंयती है. उनका नाम हिन्दुस्तान की आजादी की लड़ाई में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है. आज का दिन भारत मां के उस सच्चे सपूत को याद करने का दिन है. जिसके लिए आजादी ही उसकी दुल्हन थी.  

आइए जानते है भारत मां के सच्चे सपूत बारे में

शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में उनका जन्म हुआ था. अब यह शहर पाकिस्तान में है. 23 अपैल 1919 को जलियावाला कांड़ ने भगत सिंह का काफी प्रभवित हुए. उसके बाद बचपन से उनके मन में देश को आजादी के दिलाने अपने आप को देश के लिए समर्पित कर दिया था. भगत अपने चाचा सरदार अजीत सिंह काफी ज्यादा प्रभवित थे. भगत सिंह अपने कॉलेज के दिनों से देश भक्ति के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रम में हिस्सा लेने लगे. कॉलेज के दिनों में उन्हें सुखदेव के रूप में एक साथी मिला.

भारत को आजादी दिलाएने के लिए उस समय दो दल काम कर रहे थे. जिसमें एक नरम दल था. दूसरा गरम दल था. नरम दल में महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू थे. वहीं गरम दल के नेता चन्द्रशेखर आजादथे. उन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिए गरम दल को चुना. कुछ दिनों के बाद 30 अक्टूबर 1928 को एक बड़ी घटना घटी जब लाला लाजपतराय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया. पुलिस ने लाला लाजपतराय की छाती पर निर्ममता से लाठियां बरसाईं वे बुरी तरह घायल हो गए और इस कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मौत हो गई.लाला जी की मृत्यु से सारा देश भड़क उठा और चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया. भगत सिंह और उनके कुछ सार्थियों ने 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफसर सांडर्स को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.

इसके बाद उन्होंने भगत सिंह ने अपने अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के बहरे कानों में बम की आवाज़ पहुंचाई और जब जेल पहुंचे तो अपने विचारों से लाखों लोगों को प्रेरणा दी. जिसके बाद ब्रिटिश हुकमत भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया. भगत सिंह इस को हसंते हसंते काबूल कर लिया था.

 

 

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