किसी जामाने के दोस्त…आज क्यों खिंची तलवार? जानें इजराइल-ईरान दुश्मनी की असली वजह

किसी जामाने के दोस्त…आज क्यों खिंची तलवार? जानें इजराइल-ईरान दुश्मनी की असली वजह

Israel Iran Crisis: कभी दोस्त रहे ईरान और इजराइल आज युद्ध लड़ रहे हैं। शनिवार की रात ईरान ने सीधे इजराइल पर हमला बोल दिया। एक के बाद एक मिसाइलें दागी गईं। ड्रोन से हमला किया गया। भले ही इस हमले को इजराइल द्वारा 1 अप्रैल को सीरिया में ईरानी दूतावास पर हुए हमले का जवाब बताया जा रहा है, लेकिन दोनों के बीच दुश्मनी पुरानी है। जो देश कभी दोस्ती के लिए जाने जाते थे वो अब दुश्मनी निभाने के लिए युद्ध के मैदान में उतर आए हैं।

दोनों देशों की दुश्मनी को समझने के लिए पहले हमें थोड़ा इतिहास समझना होगा। 1948 में मध्य पूर्व में फ़िलिस्तीन के स्थान पर इज़राइल नाम का एक यहूदी राज्य बना। मुस्लिम देशों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। मध्य पूर्व के अधिकतर मुस्लिम देशों ने इजराइल को मान्यता देने से इनकार कर दिया। यह वह दौर था जब ईरान, तुर्की के बाद इजराइल को एक देश के रूप में स्वीकार करने वाला दूसरा मुस्लिम राष्ट्र था। दोनों दोस्त थे, लेकिन शुरुआती दौर में दोनों ने इस बात का इजहार तो नहीं किया, लेकिन अंदर ही अंदर एक-दूसरे की मदद करते रहे।

दोस्त कैसे बन गए दुश्मन

दोनों के बीच दुश्मनी की नींव 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद पड़ी थी। इस क्रांति के बाद ईरान को इस्लामिक गणराज्य घोषित कर दिया गया था। इसे विश्व की ऐतिहासिक क्रांति कहा गया। जिसके बाद पहलवी वंश का अंत हो गया। अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी को ईरान के सर्वोच्च नेता की गद्दी सौंपी गई।

ईरान में इस्लामिक सरकार बनने के बाद शरिया कानून लागू हुआ। यह वह समय था जब ईरान में लगभग एक लाख यहूदी थे, फिर भी खुमैनी ने देश को इस्लामिक घोषित कर दिया। खुमैनी के काल से ही ईरान का रुख धीरे-धीरे इसराइल विरोधी होने लगा। दोनों देशों के बीच तनाव की खबरें आने लगीं। हालात इतने खराब होने लगे कि दोनों देशों ने लोगों के एक-दूसरे के यहां आने-जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। दूतावास बंद कर दिए गए।

इस तरह और गहरी हो गई दुश्मनी

दोनों देशों के बीच तनाव इस हद तक बढ़ने लगा कि इसका असर मध्य पूर्व के अन्य देशों पर भी पड़ने लगा। एक दूसरे को कमजोर करने की कोशिश करने लगे। लेकिन दुश्मनी यहीं नहीं रुकी। 2006 के लेबनान युद्ध में ईरान उसके साथ खड़ा था। यह युद्ध इजराइल के खिलाफ था।

ईरान ने कई ऐसे देशों से दोस्ती का हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया जिससे उसका रुतबा बढ़ जाए। ईरान इराक, पाकिस्तान और सीरिया जैसे कई देशों के समूहों को समर्थन देता रहा। इजराइल इसे गलत मानता रहा और दुश्मनी की खाई गहरी होती गई।

परमाणु हथियार हासिल करने की जद्दोजहद भी इसकी वजह बनी

ऐसा नहीं है कि ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद इजराइल ने दोस्ती कायम रखने की कोशिश नहीं की। शुरुआती दौर में इजराइल ईरान को हथियार सप्लाई कर दोस्ती को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहा था। इसकी भी एक वजह थी। दरअसल, इराक में भगदड़ मची हुई थी। ऐसी खबरें थीं कि सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में इराक परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश कर रहा था। इससे बचने के लिए इजराइल ईरान के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहता था, लेकिन ये कोशिश ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी।

इराक के साथ युद्ध के बाद ईरान ने परमाणु हथियार हासिल करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। इसका खुलासा 2002 में हुआ था। अमेरिका ने इसका विरोध किया था। अब इजराइल को ईरान से भी स्पष्ट खतरा महसूस होने लगा। इजराइल नहीं चाहता था कि मध्य पूर्व के देशों में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हो, लेकिन हालात ठीक नहीं चल रहे थे। परिणामस्वरूप, उनके रिश्ते ख़राब हो गए और वे कट्टर दुश्मन बन गए।

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