Ram Mandir लहर पर कन्हैया कुमार का बड़ा बयान, कहा- नाम तो राम का लेते हैं लेकिन...

Ram Mandir लहर पर कन्हैया कुमार का बड़ा बयान, कहा- नाम तो राम का लेते हैं लेकिन...

Ram Mandirकांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने बीजेपी पर भगवान राम का नाम लेकर नाथूराम गोडसे के सांप्रदायिक और विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि देश की राजनीति में 'व्यक्तिवाद' परिवारवाद से भी ज्यादा खतरनाक है। कुमार ने यह भी दावा किया कि भाजपा हिंदू धर्म की महानता को कम करने की कोशिश कर रही है और राम की अवधारणा में किसी के लिए नफरत की कोई जगह नहीं है। कुमार ने यह भी कहा कि गांधी-नेहरू परिवार के योगदान को कमतर करने की कोशिश की जा रही है।

'राम जी की लहर है तो बुरी बात नहीं'

कुमार से पूछा गया कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर देश में राम मंदिर लहर की बात चल रही है जिसका फायदा बीजेपी को हो सकता है तो कांग्रेस इस मुद्दे से कैसे 'डील' करेगी? इस पर उन्होंने कहा, 'कांग्रेस को इससे निपटने की जरूरत क्यों है? राम जी की लहर है तो बुरी बात नहीं। अगर नाथूराम (नाथूराम गोडसे, जिसने महात्मा गांधी की हत्या की) की लहर होती तो यह और भी बुरा होता। मुझे लगता है कि बीजेपी जो प्रचार कर रही है उसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है।' राम जी का जन्म त्रेता युग में हुआ था, बीजेपी का गठन 1980 में हुआ था।

'नाम तो राम का लेते हैं लेकिन काम नाथूराम का करते हैं'

कुमार ने कहा, 'बीजेपी राम में आस्था रखने वाले लोगों को धोखा देने की कोशिश कर रही है, इसलिए नाम तो राम का लेते हैं लेकिन काम नाथूराम का करते हैं। इस गेम से बीजेपी को फायदा होता है।' उनके मुताबिक यह देश की संस्कृति, इतिहास और आने वाली पीढ़ियों के खिलाफ है। कुमार ने कहा, 'अगर हम राम जी की अवधारणा को देखें तो वह (हर जगह) मौजूद हैं। लोगों और स्थानों के नाम उन्हीं के नाम पर रखे गए हैं। कुछ धर्मों में एक स्थान महत्वपूर्ण होता है, लेकिन हिंदू धर्म में सभी स्थान और सभी देवता महत्वपूर्ण होते हैं।

'सिंधिया जब बीजेपी में शामिल हुए तो राष्ट्रवादी बन गए'

कांग्रेस पर परिवारवादी पार्टी होने के आरोप से जुड़े सवाल पर कुमार ने कहा कि अगर परिवारवाद जैसी कोई चीज है तो हर कोई परिवारवादी है। उन्होंने कहा, 'यह किसी की पहचान को खराब करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है। जब कांग्रेस के संदर्भ में वंशवाद की बात होती है तो मैं पूछता हूं कि क्या यह केवल गांधी-नेहरू परिवार तक ही सीमित है या यह अन्य नेताओं पर भी लागू होता है? यदि यह बात अन्य नेताओं पर लागू होती है तो फिर ऐसा क्यों है कि जब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे तब तक परिवारवादी थे और भाजपा में आते ही राष्ट्रवादी और संघवादी हो गये?

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