
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में एक तलाक की अर्जी मामले में सुनवाई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अलग-अलग रह रहे पति-पत्नी की तलाक की अर्जी को मंजूरी देते हुए कहा कि सुलह नहीं होने के चलते एक-दूसरे से अलग-अलग रहना दोनों पक्षों के प्रति क्रूरता के समान है।
जस्टिस मनमोहन और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान इस तथ्य पर संज्ञान लिया। बता दें कि चार अगस्त 2000 को शादी के बंधन में बंधने वाले दंपति ने विवाह के महज दो साल बाद 2003 में मुकदमेबाजी शुरू कर दी और विचारों में मतभेद के कारण 24 वर्षों से अलग रह रहे हैं।
सुनवाई पीठ ने कहा कि अदालतों की तरफ से बार-बार प्रयास किए जाने के बावजूद दोनों पक्षों के बीच सुलह नहीं हो सका। पीठ ने कहा कि कई मामलों में इस अदालत के सामने ऐसी चुनौती आई हैं, जहां पक्षकार काफी समय से अलग रह रहे हैं और यह लगातार माना गया है कि सुलह की कोई उम्मीद के बिना लंबे समय तक अलग रहना दोनों पक्षों के लिए क्रूरता के बराबर है।
विवाह को भंग करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात से सहमत है कि वैवाहिक विवाद से जुड़े मुकदमों का लंबे समय तक लंबित रहना विवाह को केवल कागजों तक सीमित कर देता है। ऐसे मामलों में जहां मुकदमा काफी समय से लंबित है, ऐसे में दोनों पक्षों के बीच संबंध तोड़ देना ही समाज के हित में है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए शिलांग निवासी दंपति के विवाह को भंग करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
सुनवाई पीठ ने कहा कि परिणामस्वरूप, दंपत्ति का आचरण एक-दूसरे के प्रति क्रूरता के समान है। इस न्यायालय का मत है कि दो व्यक्तियों से जुड़े वैवाहिक मामलों में, यह समाज या न्यायालय का काम नहीं है कि वह यह तय करे कि किस पति या पत्नी का आचरण सही है या गलत। उनका एक-दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करने से इनकार करना ही एक-दूसरे के प्रति क्रूरता के समान है।
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