अब मोटापा है कुपोषण का नया चेहरा...खतरे में 188 मिलियन बच्चे, UNICEF की रिपोर्ट में खुलासा

अब मोटापा है कुपोषण का नया चेहरा...खतरे में 188 मिलियन बच्चे, UNICEF की रिपोर्ट में खुलासा

Childhood Obesity: आज की दुनिया में बच्चों का स्वास्थ्य एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। UNICEF की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, पहली बार वैश्विक स्तर पर 5से 19वर्ष की आयु के बच्चों में मोटापा और कम वजन ने माता-पिता की चिंता बढ़ा दी है। भारत में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, जिसका कारण है अनहेल्दी खाना, जो शरीर को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचा रहा है।

मोटापे का बढ़ता बोझ

UNICEF की रिपोर्ट 'फीडिंग प्रॉफिट: हाउ फूड एनवायरनमेंट्स आर फेलिंग चिल्ड्रन' के अनुसार, साल 2025में 5-19साल की आयु के लगभग 188मिलियन बच्चे और किशोर मोटापे का शिकार हैं, जो वैश्विक स्तर पर 10में से 1बच्चे को प्रभावित करता है। यह आंकड़ा 2000में केवल 3%था, जो अब बढ़कर 9.4%हो गया है, जबकि कम वजन वाले बच्चों का अनुपात 13%से घटकर 9.2%रह गया है। वहीं, भारत में द लैंसेट की एक स्टडी के अनुसार, 1990में 0.4मिलियन की तुलना में 2022में 12.5मिलियन बच्चे मोटापे से ग्रस्त थे, जिसमें 7.3मिलियन लड़के और 2.3मिलियन लड़कियां शामिल हैं।

भारत में मोटापे की स्थिति

बता दें, भारत में बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5, 2019-21) के अनुसार, 5साल से कम आयु के 3.4%बच्चे अब अधिक वजन वाले हैं, जो 2015-16में 2.1%था। यूनिसेफ के वर्ल्ड ओबेसिटी एटलस 2022की भविष्यवाणी है कि 2030तक भारत में 27मिलियन से अधिक बच्चे मोटापे का शिकार होंगे, जो वैश्विक स्तर पर हर 10में से 1बच्चे का प्रतिनिधित्व करेगा। शहरी क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर है, जहां धनी परिवारों के बच्चे उच्च वसा, चीनी और नमक वाले खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन कर रहे हैं।

UNICEF की रिपोर्ट में क्या है?

UNICEF की रिपोर्ट में बताया गया है कि सस्ते, कैलोरी-घन और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ जैसे - चिप्स, बिस्किट, केक, और शीतल पेय, बच्चों के आहार का बड़ा हिस्सा बन गए हैं। ये उत्पाद चीनी, नमक, अनहेल्दी वसा और एडिटिव्स से भरपूर होते हैं, जो बच्चों को नशे की तरह आकर्षित करते हैं। फल, सब्जियां और प्रोटीन से भरपूर पारंपरिक भारतीय आहार की जगह अब फास्ट फूड और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ ले रहे हैं। शहरीकरण और डिलीवरी सेवाओं ने इन खाद्य पदार्थों को और सुलभ बना दिया है। क्योंकि ताजा और पौष्टिक भोजन कई परिवारों के लिए महंगा है, जबकि प्रोसेस्ड फूड सस्ता और आसानी से उपलब्ध है। साथ ही, माता-पिता में पोषण संबंधी जागरूकता की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।

इसके अलावा UNICEF के एक वैश्विक सर्वे में 75%युवाओं ने बताया कि उन्होंने पिछले सप्ताह जंक फूड के विज्ञापन देखे और 60%ने कहा कि इन विज्ञापनों ने उनकी भूख बढ़ाई। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया के जरिए बच्चों को सीधे टारगेट किया जा रहा है। रिपोर्ट की मानें तो आज के समय में तकनीक के बढ़ते उपयोग ने बच्चों को स्क्रीन के सामने बांध दिया है। वीडियो गेम, टीवी और स्मार्टफोन के कारण शारीरिक गतिविधियां कम हो गई हैं। भारत में लैंसेट की 2022की स्टडी के अनुसार, 50%वयस्क पर्याप्त शारीरिक गतिविधि नहीं करते और बच्चों में भी यह रुझान बढ़ रहा है।

स्वास्थ्य पर पड़ रहा क्या असर?

1. शारीरिक स्वास्थ्य: टाइप-2डायबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और कुछ प्रकार के कैंसर का खतरा बढ़ता है। डॉ. नीлам मोहन (मेदांता) के अनुसार, 80%मोटे किशोर वयस्कता में भी मोटापे का शिकार रहते हैं।

2. मानसिक स्वास्थ्य: मोटापा बच्चों के आत्मविश्वास, मानसिक स्वास्थ्य और संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करता है। सामाजिक भेदभाव और तंग करने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।

3. आर्थिक बोझ: यूनिसेफ की चेतावनी है कि 2035तक मोटापे से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं की वैश्विक लागत 4ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष से अधिक हो सकती है। भारत में यह लागत 2060तक 479बिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है।

UNICEF ने सुझाए समाधान

UNICEF ने इस संकट से निपटने के लिए कई उपाय सुझाए हैं।

1. स्कूलों में जंक फूड पर प्रतिबंध: मेक्सिको की तरह, जहां स्कूलों में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स पर प्रतिबंध है।

2. खाद्य लेबलिंग और कर: अनहेल्दी खाद्य पदार्थों पर स्पष्ट चेतावनी लेबल और कर लगाने से उपभोग कम हो सकता है।

3. विज्ञापन पर नियंत्रण: बच्चों को लक्षित करने वाले जंक फूड विज्ञापनों पर सख्त नियमन जरूरी है।

4. पौष्टिक भोजन की पहुंच: सरकारों को ताजा और पौष्टिक भोजन को सस्ता और सुलभ बनाने के लिए सब्सिडी देनी चाहिए।

5. शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा: स्कूलों में खेल और बाहरी गतिविधियों को अनिवार्य करना, सुरक्षित खेल के मैदान और साइकिल ट्रैक बनाना जरूरी है।

6. जागरूकता अभियान: माता-पिता और बच्चों को पोषण और स्वस्थ जीवनशैली के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।

भारत में उठाए गए कदम

भारत ने इस दिशा में कुछ प्रयास शुरू किए हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने दिल्ली, पुणे और बेंगलुरु में बच्चों के लिए भारत-विशिष्ट ग्रोथ और डेवलपमेंट स्टैंडर्ड्स बनाने के लिए एक अध्ययन शुरू किया है। यह स्टडी बच्चों में मोटापे और कुपोषण दोनों को संबोधित करने के लिए डिज़ाइन की गई है। इसके अलावा UNNATI पहल का लक्ष्य बच्चों के लिए अनुकूलित बेंचमार्क बनाना है, ताकि समय पर हस्तक्षेप किया जा सके।

Leave a comment