
Kidney Health: किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो अपशिष्ट पदार्थों को फिल्टर करके हमें स्वस्थ रखती है। लेकिन कुछ नौकरियां ऐसी हैं जो धीरे-धीरे किडनी पर असर डालती हैं, जिससे क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) का खतरा बढ़ जाता है। हालिया अध्ययनों से पता चला है कि भारी धातुओं, रसायनों, गर्मी और धूल के संपर्क में आने वाली नौकरियां किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं। अगर समय रहते सावधानी न बरती जाए, तो यह स्थिति मौत का कारण भी बन सकती है।
1. कृषि कार्य (एग्रीकल्चर वर्कर्स)
कृषि क्षेत्र में काम करने वाले किसान और मजदूर अक्सर तेज धूप और गर्मी में लंबे समय तक काम करते हैं। यह स्थिति डिहाइड्रेशन और हीट स्ट्रेस पैदा करती है, जो किडनी पर सीधा असर डालती है। गर्मी से शरीर में पानी की कमी होती है, जिससे किडनी का ब्लड फ्लो कम हो जाता है और ट्यूबुलर इंजरी होती है। बार-बार होने वाली एक्यूट किडनी इंजरी (AKI) धीरे-धीरे CKD में बदल सकती है।
2025की एक रिपोर्ट के अनुसार, गन्ना किसानों में मेसो-अमेरिकन नेफ्रोपैथी जैसी समस्या आम है, जहां गर्मी और शारीरिक श्रम से किडनी की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। एक 2024अध्ययन में पाया गया कि फ्लोरिडा के निर्माण मजदूरों की तरह कृषि कार्यकर्ताओं में AKI का जोखिम 38%तक होता है। अगर किसान रोजाना 10-12घंटे गर्मी में काम करें, तो किडनी फेलियर का खतरा दोगुना हो जाता है।
2. खनन कार्य (माइनिंग वर्कर्स)
खनन उद्योग में काम करने वाले मजदूर भारी धातुओं जैसे मरकरी, कैडमियम और लेड के संपर्क में आते हैं। ये धातुएं किडनी की ट्यूबुलर कोशिकाओं में जमा होकर ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस पैदा करती हैं, जिससे माइटोकॉन्ड्रिया डिसफंक्शन और प्रोटीनुरिया होता है। गोल्ड माइनिंग में मरकरी एक्सपोजर से ग्लोमेरुलर डैमेज होता है, जो eGFR को कम करता है। 2025की एक समीक्षा में पाया गया कि खनिकों में CKD का जोखिम सामान्य से अधिक है, खासकर लो-रिसोर्स सेटिंग्स में। 2024की मेटा-एनालिसिस से पता चला कि कैडमियम एक्सपोजर eGFR को 0.09यूनिट तक घटा सकता है। अगर सुरक्षात्मक उपकरण न पहने जाएं, तो यह स्थिति एंड-स्टेज रीनल डिजीज (ESRD) तक पहुंच सकती है।
3. निर्माण कार्य (कंस्ट्रक्शन वर्कर्स)
निर्माण क्षेत्र के मजदूर धूल, सीमेंट, कंक्रीट और डीजल एग्जॉस्ट जैसी पार्टिकल्स के संपर्क में रहते हैं। ये इनऑर्गेनिक डस्ट किडनी में जमा होकर सूजन और फाइब्रोसिस पैदा करती हैं, जिससे CKD का जोखिम बढ़ता है। एक बड़े कोहोर्ट अध्ययन में पाया गया कि ऐसे मजदूरों में कामकाजी उम्र (65वर्ष से कम) में CKD का हेजर्ड रेशियो 1.15तक होता है। गर्मी और शारीरिक श्रम से रैबडोमायोलिसिस होता है, जो किडनी को और नुकसान पहुंचाता है। 2025की रिपोर्ट्स से पता चलता है कि टेक्सास और फ्लोरिडा जैसे गर्म इलाकों में निर्माण मजदूरों में AKI के मामले बढ़ रहे हैं, जहां यूरिन में ब्लड दिखना आम है। अगर एक्सपोजर जारी रहा, तो रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी की जरूरत पड़ सकती है।
4. मैन्युफैक्चरिंग और पेंटिंग कार्य (मैन्युफैक्चरिंग वर्कर्स)
मैन्युफैक्चरिंग, पेंटिंग और ड्राई क्लीनिंग जैसे पेशों में ऑर्गेनिक सॉल्वेंट्स जैसे ट्राइक्लोरोएथिलीन (TCE) और मेथनॉल का इस्तेमाल होता है। ये रसायन मेटाबोलाइट्स बनाकर किडनी की ट्यूबुलर कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और सेल डेथ होता है। बैटरी प्रोडक्शन में लेड एक्सपोजर से ट्यूबुलोइंटरस्टिशियल नेफ्राइटिस होती है। 2025की समीक्षा में पाया गया कि एयरक्राफ्ट वर्कर्स में TCE एक्सपोजर से ESRD का जोखिम 1.92गुना बढ़ जाता है। हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि ऐसे कार्यकर्ताओं में यूरिनरी प्रोटीन्स और एनजाइम्स बढ़ जाते हैं, जो किडनी फेलियर का संकेत हैं।
स्वास्थ्य प्रभाव और जोखिम
इन नौकरियों में काम करने से किडनी की कार्यक्षमता कम हो जाती है, जिससे हाइपरटेंशन, डायबिटीज और इंफ्लेमेशन बढ़ता है। CKD के शुरुआती लक्षण जैसे थकान, मांसपेशियों में ऐंठन और यूरिन में बदलाव नजरअंदाज करने से स्थिति गंभीर हो सकती है। वैश्विक स्तर पर, ILO के अनुसार, हीट स्ट्रेस से 26.2 मिलियन लोग CKD से प्रभावित हैं। अगर बार-बार AKI होती है, तो जीवन प्रत्याशा 15-20 साल कम हो सकती है।
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