‘राज्यसभा के आंकड़ों ने AAPDa की ‘शिक्षा क्रांति’ की सच्चाई उजागर कर दी’ आप पार्टी की शिक्षा नीति पर जमकर बरसे आशीष सूद

‘राज्यसभा के आंकड़ों ने AAPDa की ‘शिक्षा क्रांति’ की सच्चाई उजागर कर दी’ आप पार्टी की शिक्षा नीति पर जमकर बरसे आशीष सूद

Haryana News: दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने राज्यसभा में प्रस्तुत तथ्यों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि पिछली आपदासरकार की तथाकथित ‘एजुकेशन रेवोल्यूशन’ दरअसल बच्चों के भविष्य को सँवारने की नहीं, बल्कि आंकड़ों को संवारने की नीति थी।

सूद ने कहा कि आज दिल्ली में हमारी सरकार है, लेकिन पिछली आपदासरकार की शिक्षा नीति की असलियत उजागर करने के लिए भी किसी भाजपा नेता की नहीं, आपदाकी अपनी राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल हैं, जिन्होंने संसद में यह सवाल किया कि कक्षा 9में फेल हुए बच्चों को बड़े पैमाने पर NIOS में भेजना वास्तव में उन्हें दूसरा मौका दे रहा है या फिर स्कूलों के नतीजों को बेहतर दिखाने का तरीका बन गया है।

आशीष सूद ने कहा कि जब अपनी ही पार्टी की सांसद यह पूछने को मजबूर हो जाए कि क्या बच्चों को सिस्टम से बाहर धकेलकर आँकड़े चमकाए जा रहे हैं, तो उस मॉडल की सच्चाई अपने-आप सामने आ जाती है।। राज्यसभा में शिक्षा मंत्रालय द्वारा दिए गए लिखित उत्तर के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कक्षा 9के 3.20लाख से अधिक बच्चे फेल हुए। वर्ष-वार स्थिति और भी चिंताजनक है।

2020–21: 31,541छात्र फेल

2021–22: 28,548छात्र फेल

2022–23: 88,421छात्र फेल

2023–24: 1,01,344छात्र फेल

2024–25: 70,296छात्र फेल

कुल: 3,20,150छात्र

शिक्षा आशीष सूद ने कहा कि इसी अवधि में 71,000से अधिक छात्रों को NIOS में दाखिल किया गया, जिनमें 2022–23में ही 29,436दाखिले हुए। सूद ने कहा कि NIOS अपने आप में एक वैकल्पिक और सहायक व्यवस्था हो सकती है, लेकिन जो आँकड़े सामने आए हैं, वे बताते हैं कि इसे सहयोग के लिए नहीं, साइड-लेन के रूप में इस्तेमाल किया गया। माननीय सांसद स्वाति मालीवाल जी का सवाल बिल्कुल जायज़ है,” उन्होंने कहा कि क्या NIOS बच्चों को दूसरा मौका देने के लिए इस्तेमाल हुआ, या फिर उन्हें चुपचाप मुख्यधारा से बाहर करने के लिए, ताकि 10वीं-12वीं के रिज़ल्ट अच्छे दिखें?”

 

उन्होंने कहा कि जब कक्षा 9में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों को फेल किया जाता है और हजारों को नियमित स्कूल व्यवस्था से बाहर कर दिया जाता है, तो 10वीं या 12वीं में ऊंचा पास प्रतिशत किसी उपलब्धि का नहीं, बल्कि एक गणितीय नतीजे का संकेत होता है।

सूद ने कहा ने कहा कि यह शिक्षा नीति नहीं, बल्कि रिज़ल्ट-मैनेजमेंट पॉलिसी है, और इसे ‘दुनिया का नम्बर-वन शिक्षा मॉडल’ कहना उन बच्चों, उनके अभिभावकों और शिक्षकों तीनों का अपमान है। उन्होंने कहा कि ये आंकड़े केवल नंबर नहीं हैं। इन 3.20लाख मामलों के पीछे हज़ारों सपने, परिवारों की उम्मीदें और बच्चों का भविष्य जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा ने कहा कि सबसे बड़ा सवाल यह है कि समय रहते इन बच्चों को अकादमिक सहायता क्यों नहीं दी गई, ताकि वे फेल होने की कगार तक ही न पहुँचें?आशीष सूद ने स्पष्ट किया कि वर्तमान दिल्ली सरकार की प्राथमिकता बच्चों को बाहर करना नहीं, उन्हें संभालना है।

उन्होंने कहा ने कहा कि हमारी सरकार फ़िल्टरिंग नहीं, फ़ाउंडेशन-बिल्डिंग पर काम करेगी शुरुआती हस्तक्षेप, कक्षा 8-9में मज़बूत अकादमिक सपोर्ट, पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ,दिल्ली को पोस्टर वाले रिज़ल्ट नहीं, बल्कि ऐसा शिक्षा तंत्र चाहिए जो कमज़ोर बच्चों को उठाए, न कि उन्हें चुपचाप किनारे कर दे। उन्होंने कहा कि असली शिक्षा क्रांति वही होगी, जहाँ हर बच्चा गिना जाएगा।सिर्फ़ पास होने वाले नहीं।

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