Explainer: पाकिस्तान को ट्रंप से चाहिए यूक्रेन जैसी डील, हार की आशंका के बाद भी बाज़ी खेलने को तैयार

Explainer: पाकिस्तान को ट्रंप से चाहिए यूक्रेन जैसी डील, हार की आशंका के बाद भी बाज़ी खेलने को तैयार

Pakistan Mineral Diplomacy: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर पाकिस्तान की नापाक मंशा को उजागर कर दिया है। हमले की जिम्मेदारी भले ही ‘TRF’ नामक संगठन ने ली हो, लेकिन इसमें पाकिस्तान की भूमिका साफ नजर आती है। खास बात यह है कि यह हमला ऐसे समय हुआ जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस भारत दौरे पर थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की यात्रा पर थे। माना जा रहा है कि पाकिस्तान का मकसद इस हमले से कश्मीर मुद्दे को फिर से वैश्विक मंच पर लाना है।

बता दें कि,आतंकी सेना की वर्दी पहनकर आए थे और उन्होंने लोगों से कलमा पढ़ने को कहा। जो लोग नहीं पढ़ पाए, उन्हें गोली मार दी गई। इस तरह के हमले से साफ है कि पाकिस्तान भारत में सांप्रदायिक तनाव फैलाना चाहता है। यह हमला धार्मिक पहचान के आधार पर हिंसा फैलाने की पुरानी रणनीति को दोहराता है।

खनिज कूटनीति से अमेरिका को साधने की चाल

पाकिस्तान ने हाल ही में अमेरिका में एक मिनरल फोरम आयोजित किया, जिसमें उसने अमेरिका को अपने खनिज संसाधनों में निवेश का न्योता दिया। पाकिस्तान चाहता है कि वह चीन के विकल्प के रूप में अमेरिका को आकर्षित करे। बलूचिस्तान में मौजूद लीथियम और कोबाल्ट जैसे खनिजों के जरिए पाकिस्तान को उम्मीद है कि अमेरिका उसकी आतंकी गतिविधियों को नजरअंदाज कर देगा।

पाकिस्तानी सेना प्रमुख का भड़काऊ बयान

हमले से पहले पाक सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने कश्मीर को पाकिस्तान की ‘जीवन रेखा’ बताया और दो-राष्ट्र सिद्धांत को दोहराया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान आतंकियों के लिए इशारा था।

अमेरिकी हथियार आतंकियों के हाथ में

हमले में इस्तेमाल हुई M4राइफलें अमेरिका की हैं, जो अफगानिस्तान से तालिबान के जरिये पाकिस्तान पहुंचीं। वॉशिंगटन पोस्ट और बीबीसी की रिपोर्ट्स भी इसकी पुष्टि करती हैं।

भारत का कड़ा जवाब और आगे की चेतावनी

भारत ने हमले के बाद सिंधु जल संधि निलंबित कर दी है, अटारी-वाघा सीमा बंद की गई और पाकिस्तानी राजनयिकों को देश से निकाला गया। भारत ने साफ किया है कि यदि पाकिस्तान अपनी नीति नहीं बदलेगा, तो सैन्य विकल्प भी अपनाए जा सकते हैं।

अब देखना यह है कि अमेरिका, खासकर डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेता, पाकिस्तान की इस खनिज कूटनीति को कैसे देखते हैं और भारत के साथ खड़े होते हैं या नहीं।

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