Samबहादुर का ऑफिशियल टीजर हुआ लॉन्च, जानें आखिर कौन थे सैम मानेकशॉ?

Samबहादुर का ऑफिशियल टीजर हुआ लॉन्च, जानें आखिर कौन थे सैम मानेकशॉ?

Sam Bahadur Teaser: पिछले कुछ समय से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बायोपिक फिल्में सफलता की गारंटी बन गई हैं। वहीं अब देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ पर एक बायोपिक फिल्म रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म में एक्टर विक्की कौशल सैम मानेकशॉ का किरदार निभा रहे हैं, इसलिए फैन्स की उम्मीदें भी दोगुनी हो गई हैं। फिल्म का टीजर रिलीज हो गया है।इसका टाइटल सैम बहादुर रखा गया है। टीजर में सैम के किरदार में विक्की कौशल को लोग काफी पसंद कर रहे हैं। लेकिन क्या आप सैम मानेकशॉ के बारे में जानते हैं जिन पर ये फिल्म बनी है? आइए एक नजर डालते हैं देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के जीवन पर।

सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल, 1914 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनका चरित्र बहुत मजबूत था और ऐसा माना जाता है कि उनके व्यक्तित्व में एक सैनिक का व्यक्तित्व झलकता था। वह अपने काम में निपुण थे और उतने ही सख्त भी। उन्होंने अपनी सेवा द्वितीय विश्व युद्ध से शुरू की और अपने पूरे करियर के दौरान 5 युद्धों में भाग लिया। वह देश की जिम्मेदारियां अपने मजबूत कंधों पर उठाते रहे। उन्होंने पाकिस्तान को करारा जवाब भी दिया।

जब मानेकशॉ ने किए थे पाकिस्तान के दो टुकड़े

जब 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ था, तब सैम इतनी ऊंची आवाज में बोलते थे कि कोई भी उन्हें नहीं रोकता था। सैम मानेकशॉ वो नाम था जिसने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे। उन्हें 1971 के युद्ध में जीत का सबसे बड़ा हीरो माना जाता है।एक विदेशी अखबार को दिए इंटरव्यू में अर्देशिर कावसजी ने पाकिस्तान के दो टुकड़ों में बंटने की कहानी बताई थी। कावसजी पाकिस्तान के प्रसिद्ध व्यापारी थे। उन्होंने मानेकशॉ से अपनी मुलाकात का किस्सा साझा किया था। जब उन्होंने मानेकशॉ को मोटरसाइकिल के बारे में याद दिलाया।

दरअसल, बंटवारे से पहले मानिकशॉ और 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे याह्या खान एक ही रेजिमेंट में थे। जब बंटवारा हुआ तो याह्या ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया और मानेकशॉ यहीं रह गये। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जिन्ना ने भी उन्हें पाकिस्तान आने की पेशकश की थी लेकिन मानेकशॉ ने इसे अस्वीकार कर दिया था।जब याह्या पाकिस्तान जा रहे थे तो उन्होंने सैम मानेकशॉ से अपनी मोटरसाइकिल उधार ली और कहा कि वह इसके लिए उन्हें 1000 रुपये देंगे। लेकिन याहया यह भूल गया। बाद में, जब भारत ने 1971 का युद्ध जीता, तो यह कहा गया कि यामाहा ने मोटरसाइकिल के लिए 1000 रुपये नहीं दिए, लेकिन उन्हें इसकी आधी कीमत पाकिस्तान को देनी पड़ी।

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