ताबड़तोड़ मिसाइली हमलों के बावजूद, हूतियों के आंतक को खत्म करने में क्यों नाकाम हो रहे ‘सुपरपावर’

ताबड़तोड़ मिसाइली हमलों के बावजूद, हूतियों के आंतक को खत्म करने में क्यों नाकाम हो रहे ‘सुपरपावर’

Houthi Rebels: इजरायल-हमास के युद्ध ने एक नए युद्ध को जन्म दे दिया है। इस युद्ध ने लाल सागर में जन्म लिया। दरअसल, यमन के ईरान समर्थक हूती विद्रोहियों ने खुलेआम हमास का समर्थन किया है और समुद्र में उन जहाजों को निशाना बना रहे हैं जो या तो इजराइल जा रहे हैं या जिनका इजराइल से किसी तरह का संबंध है। जिससे नाराज हुए अमेरिका और ब्रिटेन ने हूतियों के ठिकानों पर लगातार हमला कर रहा है।

नवंबर से लेकर अभी तक हूती विद्रोही 30 जहाजों को अपना निशाना बना चुके हैं। लेकिन अमेरिका के ताबड़तोड़ मिसाइलों के हमले के बावजूद हूती विद्रोहियों पर कोई असर नहीं पड़ा है। यहां तक की हूतियों से निपटने के लिए 10 देश एक साथ आए हैं और एक टास्क फोर्स का भी गठन हुआ है। दरअसल, अमेरिका के अलावा यूके, बहरीन, कनाडा, फ्रांस, इटली, नॉर्वे, सेशेल्स, स्पेन और नीदरलैंड देशों की सेनाएं हूतीयों के खिलाफ लड़ाई में साथ आईं हैं।

जड़ से खत्म करना हो रहा मुश्किल

इन सब ताकतों एक साथ आने के बाद भी यमन विद्रोहियों के आतंक को जड़ से खत्म करना मुश्किल हो रहा है। यमन के हूतियों के विद्रोह के दो हिस्से हैं एक तो इरादा और दूसरा है क्षमता। हूतीयों का कहना है कि उनके हमले फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता जताने के लिए है।  उन्होंने दिसंबर में चेतावनी दी थी कि अगर इजरायल ने गाजा पट्टी में लड़ाई फिर से शुरू की तो वे इजराइल पर मिसाइल हमला करेंगे।  

अमेरिका ने लगाया आरोप

अब अगर बात करें उनकी क्षमता की तो यमन के खिलाफ लड़ रही अंतरराष्ट्रीय टास्क फोर्स ने हाल ही में यमन में कई हूती ठिकानों पर हमला किया था। इन पर हूती सेना के प्रवक्ता याह्या सरिया ने कहा कि हमलों का जवाब दिया जाएगा। वहीं अमेरिका के सुरक्षा विभाग का आरोप है कि हूतीयों की बढ़ती सैन्य क्षमता के पीछे ईरान का हाथ है। दावा किया जा रहा है कि ईरान उपकरण, ट्रेनिंग, खुफिया जानकारी और पैसों से हूतीयों की मदद कर रहा है। वहीं ईरान इन आरोपों को खारिज करता रहा है।

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