13 दिन से अनशन पर हैं क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगुचक, जानें क्या है उनकी मांगे

13 दिन से अनशन पर हैं क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगुचक, जानें क्या है उनकी मांगे

Sonam Wanguchak:  पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया दो हैशटैग काफी ज्यादा चल रहे हैं वो है #saveladakhऔर #savehimalayas. दरअसल, लद्दाख के फेमस क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगुचक 6 मार्च से ये कैंपेन चला रहे हैं। इस कैंपेन के तहत वो 21 दिनों के आमरण अनशन पर हैं। जिसके 13 दिन बीत चुके हैं। ऐसे में आज चर्चा करेंगे आखिर क्यों सोनम वांगुचक अनशन कर रहे हैं और आखिर उनकी मांग क्या है।

जहां एक तरफ पूरे देश में चुनावी मौसम है। सभी पार्टियां तमाम तरीके के ऐलान कर रहीं हैं। तो वही दूसरी तरफ लद्दाख में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। लद्दाख के फेमस क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगुचक अनशन पर हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सोनम वांगुचक के साथ सोमवार को करीब-करीब 1500 स्थानीय लोग एक दिवसीय भूख हड़ताल पर थे। इस अनशन का वीडियो अलग अलग प्लेटफार्म्स पर तेजी से वायरल हो रहा है।

क्यों हो रहा अनशन?

वायरल वीडियो में सोनम वांगुचक ने बताया है कि कैसे करीब-करीब 250 लोग उनके समर्थन में रात को भूखे सोए। दरअसल, क्लाइमेट एक्टिविस्ट की मांग है कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। सोनम वांगचुक ने कहा है कि, "जब विविधता में एकता की बात आती है तो छठी अनुसूची भारत की उदारता का प्रमाण है। यह महान राष्ट्र न सिर्फ विविधता को सहन करता है बल्कि उसे प्रोत्साहित भी करता है।"

क्या है छठी अनुसूची?

दरअसल, धारा 370 खत्म होने के बाद लद्दाख एक केंद्रशासित प्रदेश बन गया है और जम्मूकश्मीर में विधानसभा की तरह यहां कोई स्थानीय काउंसिल नहीं है। छठी अनुसूची में शामिल किए जाने के बाद लद्दाख के लोग स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषदें बना सकेंगे, जिसमें शामिल लोग स्थानीय स्तर पर काम करेंगे। इसके अलावा उनकी केंद्रीय स्तर पर लोकसभा में दो सीट और राज्यसभा में भी प्रतिनिधित्व की मांग उठ रही है। बता दें, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम छठी अनुसूची में पहले से शामिल हैं, जो आदिवासी समुदाय को विशेष सुरक्षा प्रदान करता है।

हालांकि केंद्र सरकार ने धारा 371 के तहत लद्दाख के लिए स्पेशल स्टेटस देने की पेशकश की हुई है। यह पूरे राज्य में लागू नहीं किया जाता है, बल्कि जिला स्तर और क्षेत्रीय स्तर पर लागू किया जाता है, जिससे वहां के पर्यावरण या फिर जनजातीय या संस्कृतियों को संरक्षण दिया जा सके। देश के कुछ उत्तर पूर्वी राज्यों में ये लागू भी है।ऐसे में अब ये देखना होगा कि आखिर इस अनशन का क्या नतीजा निकलता है।

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