भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर ट्रंप का टैरिफ 'बम' फूटा, लेकिन नहीं होगा धमाका; जानें इसके पीछे का राज

भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर ट्रंप का टैरिफ 'बम' फूटा, लेकिन नहीं होगा धमाका; जानें इसके पीछे का राज

Pharma Trade War: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपनी ट्रेड वॉर की रणनीति को तेज करते हुए बीते दिन एक बड़ा ऐलान किया। उन्होंने कहा कि 01अक्टूबर 2025से ब्रांडेड या पेटेंटेड फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट्स पर 100प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा, जब तक कि कोई कंपनी अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट न बना रही हो। जिसके बाद इसका सीधा असर भारतीय शेयर बाजार पर देखने को मिल रहा है। सेंसेक्‍स 412.67अंक गिरकर 80,747.01पर है और निफ्टी 115अंक गिरकर 24,776पर कारोबार कर रहा है। इसके अलावा भारतीय शेयर बाजार में फार्मा सेक्टर के स्टॉक्स में भारी गिरावट भी दर्ज की गई, लेकिन चिंता की बात नहीं है, भारत के लिए यह टैरिफ ज्यादा घातक साबित नहीं होगा।

भारत का फार्मा निर्यात

ट्रंप ने यह घोषणा ट्रुथ सोशल पर शेयर की और कहा कि इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर ट्रेड एक्सपैंशन एक्ट की धारा 232के तहत लागू किया जाएगा। लेकिन भारत पर फार्मा टैरिफ का ज्‍यादा असर नहीं होगा। दरअसल, भारत दुनिया का सबसे बड़ा जेनेरिक दवाओं का उत्पादक है और अमेरिका को अपनी फार्मा निर्यात का लगभग एक तिहाई हिस्सा भेजता है। वित्त वर्ष 2025में भारत के अमेरिका को फार्मा निर्यात की वैल्यू करीब 10.5अरब डॉलर रही, जो कुल फार्मा निर्यात का 78प्रतिशत है। लेकिन यह निर्यात मुख्य रूप से सस्ती जेनेरिक दवाओं पर आधारित है, जो इस टैरिफ के दायरे से बाहर हैं।

 ब्रांडेड या पेटेंटेड दवाओं का हिस्सा बहुत कम है। यानी कुल मिलाकर, भारत अमेरिकी दवा आयात का मात्र 5.3प्रतिशत सप्लाई करता है, जबकि आयरलैंड (30प्रतिशत), स्विट्जरलैंड (8.8प्रतिशत) और जर्मनी (7.8प्रतिशत) जैसे देश ब्रांडेड दवाओं के बड़े निर्यातक हैं। इसलिए, ट्रंप का यह 'टैरिफ बम' भारत के जेनेरिक सेक्टर को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

अमेरिका में भारतीय कंपनियों की मौजूदगी

अधिकांश बड़ी भारतीय फार्मा कंपनियों के पास अमेरिका में पहले से ही मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स और सब्सिडियरीज हैं। उदाहरण के लिए, सन फार्मा, सिप्ला और डॉ. रेड्डीज जैसी कंपनियां अमेरिकी बाजार में मजबूत पकड़ रखती हैं। ट्रंप के ऐलान के अनुसार, अगर कोई कंपनी अमेरिका में प्लांट बना रही है या 'ग्राउंड ब्रेकिंग' कर रही है, तो उसे छूट मिलेगी। ऐसे में, कई भारतीय फर्में इस दायरे से बाहर हो सकती हैं। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट पंकज पांडे का कहना है कि नियर-टर्म इम्पैक्ट सीमित रहेगा, क्योंकि भारत का फोकस जेनेरिक्स पर है। हालांकि, भविष्य में कॉम्प्लेक्स जेनेरिक्स या बायोसिमिलर्स को शामिल करने की आशंका बनी हुई है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

वहीं, सीटीआई वेल्थ के केन पेंग जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि यह टैरिफ जेनेरिक सप्लाई को प्रभावित नहीं करेगा, जो भारत और चीन जैसे देशों से आती है। बल्कि यूरोप, स्विट्जरलैंड और जापान जैसे देशों से आने वाली ब्रांडेड दवाओं पर असर ज्यादा पड़ेगा। डॉ. रेड्डीज के सीईओ एरेज इजरायली ने भी कहा है कि कंपनी अमेरिका में विस्तार के लिए खुली है, जिसमें अधिग्रहण भी शामिल हो सकता है, ताकि टैरिफ से बचा जा सके। इसके अलावा स्टॉक मार्केट में कुछ हलचल हुई है। सन फार्मा, सिप्ला और डॉ. रेड्डीज के शेयरों में गिरावट देखी गई, लेकिन एक्सपर्ट्स इसे शॉर्ट-टर्म रिएक्शन मान रहे हैं।

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