
ग्रीस की जनता ने जनमत संग्रह में यूरोपियन यूनियन और आईएमएफ (international monetary fund) की कड़ी शर्तों को नकार दिया है। अब ग्रीस का यूरो जोन से बाहर जाना लगभग तय माना जा रहा है। ग्रीस की जनता के इस फैसले का असर दुनिया भर के बाजारों पर पड़ सकता है। सोमवार को भारतीय शेयर बाजार पर भी इसका असर देखा गया। सोमवार को भारतीय शेयर बाजार की शुरुआत गिरावट के साथ हुई है। सेंसेक्स और निफ्टी एक फीसदी से ज्यादा की गिरावट के साथ कारोबार कर रहा है। मार्केट एक्सपर्ट कहते है कि ग्रीस संकट गहराने से अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजारों में यह गिरावट देखी जा रही है।
यूरोपियन यूनियन और IMF ने ग्रीस से कर्ज के बदले खर्चों में कटौती की कड़ी शर्तें रखी थी। जनता से सरकार ने केवल दो सवाल किए थे कि इन शर्तों को माना जाए या नही। इसके लिए जनमत संग्रह कराया गया था। इसके लिए दो ऑप्शन दिए गए थे यस या नो। खास बात यह है कि बेलआउट पैकेज जनता ने नकार कर अपने पीएम एलेक्सिस सिप्रास में भरोसा जताया। बता दें कि सिप्रास ने भी जनता से नो पर ही वोट डालने की अपील की थी। दो तिहाई वोटों की गिनती के बाद 61 फीसदी लोगों ने नो के पक्ष में वोट दिया तो केवल 39 फीसदी लोगों ने बेलआउट पैकेज के लिए यस कहा।
ग्रीस को 2018 तक 50 अरब यूरो यानी 5.5 अरब डॉलर के नए आर्थिक पैकेज की जरूरत है। यूरोपियन यूनियन और IMF ने इसके लिए खर्चों में कटौती की बेहद कड़ी शर्तें रखी थी। ग्रीस के वित्त मंत्री यानिस वैरॉफकिस का दावा है कि ग्रीस यूरोजोन से हटा तो यूरोप को एक हजार अरब यूरो का नुकसान होगा, लेकिन यूरो जोन में शामिल देश इसे खारिज कर रहे है।
ग्रीस के जनमत संग्रह के बाद आगे की रणनीति तय करने के लिए मंगलवार को यूरोजोन के देशों के वित्तमंत्री एक खास मीटिंग करने जा रहे है। ग्रीस के पीएम सिप्रास ने कहा, हम भी इस मीटिंग में भाग लेगें। हम चाहते हैं कि दिक्कतों के बाद भी हमारी बैंकिंग व्यवस्था में यूरो जोन यकीन रखे, इसलिए हम इस मीटिंग में भाग लेंगे। ग्रीस अगर यूरोजोन से बाहर निकलता है तो उसे अपनी नेशनल करंसी लाना पड़ेगी। मान लीजिए अगर ऐसा होता है तो ग्रीस की करंसी को इंटरनेशनल मार्केट में साख बनाने के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा।
कुछ अफरातफरी का माहौल बन सकता है। ग्रीस के जिन लोगों का अपने यहां की बैंकों में दूसरे देशों की करंसी के रूप में पैसा जमा है, वे उसे नई करंसी में बदलवाने की कोशिश करेंगे। इसे संभालना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। वैसे तो यूरो जोन से निकलने के लिए कोई निश्चित नियम तय नहीं हैं लेकिन अगर ग्रीस इससे बाहर आता है तो यूरो जोन की साख पर भी सवाल उठेंगे।
जनता के फैसले के बाद ग्रीस के डिप्टी फॉरेन मिनिस्टर युक्लिड स्कालोटोस ने कहा, सरकार के पास अब एक लोकप्रिय जनादेश है। साथ ही आईएमएफ ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि ग्रीस इस स्थिति में ज्यादा दिन तक नहीं रह सकता है। हम जल्द ही एक देश के रूप में ज्यादा मजबूती के साथ सामने आएंगे। जनमत संग्रह के बाद जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद ने कहा, ग्रीस के जनमत संग्रह का सम्मान होना चाहिए। ग्रीस में जनमत संग्रह पर पूरी दुनिया की नजर थी।
भारत के शेयर बाजार में लिस्टेड कुछ आईटी, फार्मा और ऑटो कंपनियां यूरो में लेनदेन करती है। उन्होंने यूरोप की बैंकों से कर्ज भी लिया है। अगर ग्रीस संकट के कारण यूरोप की बाकी बैंकों में इंटरेस्ट रेट बढ़ता है तो ये कंपनियां भारतीय बाजार या भारतीय बैंकों से अपना पैसा निकालेंगी।
ग्रीस छोटा देश है। इसकी दुनिया के जीडीपी में हिस्सेदारी सिर्फ 0.5% है। ग्रीस को इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड का 1.6 अरब पाउंड का कर्ज लौटाना था। देश दिवालिया हो चुका है। उसे यूरो ज़ोन यानी यूरो को करंसी के रूप में इस्तेमाल कर रहे देशों का गुट छोड़ना पड़ सकता है। ताजा संकट के कारण ग्रीस अपनी नेशनल इनकम का एक चौथाई हिस्सा खो चुका है। युवाओं की बेरोजगारी दर 50% और देश की कुल औसत बेरोजगारी दर 26% हो चुकी है। वह 76 अरब यूरो का टैक्स वसूल नहीं कर पाया है। 2015 के शुरुआती 6 महीनों के अंदर 8500 स्मॉल और मीडियम बिजनेस बंद हो चुके है। 2015 में ग्रीस का जीडीपी 2009 के मुकाबले 25% कम माना जा रहा है।
2000 में ग्रीस को यूरोजोन में एंट्री दी गई। लेकिन वह इसके लिए काबिल था या नही, इस पर हमेशा सवाल उठते रहे। 2004 के एक फाइनेंशियल ऑडिट हुआ। इसमें खुलासा हुआ कि ग्रीस को यूरोजोन में शामिल किए जाने से पहले यानी 1999 में उसका बजटीय घाटा तय सीमा से 3% कम था। बहरहाल, यूरोज़ोन में आने के बाद ग्रीस की ईकोनॉमी शुरुआती वर्षों में मजबूत होती गई। यूरो की क्रेडिबिलिटी के कारण इन्वेस्टमेंट आया। सरकार को कर्ज मिला। कई बिजनेस शुरू हुए। अक्टूबर 2009 में उसे पहला झटका लगा। तब खुद ग्रीस ने ही पाया कि वह अपना बजटीय घाटा 6% मानता है, लेकिन वह उसकी ओरिजिनल करंसी के लिहाज से 15% से ज्यादा है। इसी के बाद देश की इकोनॉमी गिरने लगी। उसे आईएमएफ से कर्ज लेना पड़ा।
2010 में आईएमएफ, यूरोपियन सेंट्रल बैंक और यूरोपीयन कमिशन ने मिलकर ग्रीस को कुल 240 अरब यूरो का कर्ज दिया। लेकिन यह शर्त भी रख दी कि सरकार अपने खर्चों में कटौती करेगी। इसके बाद से इन्वेस्टर ग्रीस की बैंकों से पैसा निकालने लगे। यूरोपीयन सेंट्रल बैंक को इमरजेंसी लिक्विडिटी असिस्टेंस देना पड़ा। 2012 में मिली इस मदद के मुताबिक तब बैंकों को पूरी तरह दिवालिया घोषित नहीं किया गया, बल्कि यह बताया गया कि ये बैंक नकदी के संकट से जूझ रहे है। लेकिन बीते रविवार यूरोपीयन सेंट्रन बैंक ने एलान कर दिया कि वो अब अपनी मदद को आगे नहीं बढ़ाएगा
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