
अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज का मानना है कि कमजोर मानसून भारत की क्रेडिट रेटिंग को प्रभावित कर सकता है। एजेंसी का कहना है कि अगर मानसून कमजोर रहा तो न केवल खाद्य उत्पादों की महंगाई बढ़ेगी बल्कि सरकार के घाटे में भी वृद्धि होगी। हाल ही में मौसम विभाग ने मानसून के अनुमान को सामान्य से कम की श्रेणी से और नीचे कमजोर मानसून में तब्दील कर दिया है। मूडीज की इन्वेस्टर की रिपोर्ट में कहा गया है कि कमजोर मानसून भारत के लिए क्रेडिट निगेटिव हो सकता है। चूंकि मानसून कमजोर रहा तो खेती की पैदावार कम होगी, खाद्य उत्पादों के दामों में बढ़ोतरी होगी और यह सरकार के खजाने पर दबाव बनाएगा। हालांकि मूडीज ने अभी यह तय नहीं किया है कि रेटिंग में गिरावट का वास्तविक स्तर क्या होगा। यह निर्भर करेगा कि मानसून का वितरण क्षेत्रवार किस तरह का रहता है और सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए किस तरह की नीति अपनाती है। मूडीज की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रत्येक परिवार के कुल खर्च का 50 फीसद भोजन पर खर्च होता है। इसलिए जैसे ही खाद्य उत्पादों के दाम बढ़ते है, यह सबसे पहले परिवारों के बजट पर असर डालता है। इससे पहले साल 2012 और 2013 में भारत में महंगाई की दर दहाई अंक में पहुंच चुकी है। इसकी मुख्य वजह खाद्य उत्पादों की कीमतों में वृद्धि रही। हालांकि अभी खुदरा महंगाई की दर रिजर्व बैंक के छह फीसद के लक्ष्य से नीचे चल रही है।
थोक महंगाई दर शून्य से नीचे बनी हुई है। मूडीज का कहना है कि साल 2014 में औसत से कम मानसून रहने की वजह से कृषि की विकास दर 0.2 फीसद तक सीमित रह गई। जबकि उसके पिछले साल खेती की विकास दर 3.7 फीसद की दर से बढ़ी थी। उस साल देश में मानसून सामान्य रहा था। चूंकि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 17-18 फीसद है। इसलिए जीडीपी की विकास दर कृषि पर काफी हद तक निर्भर करती है। अगर इस साल भी आशंका के मुताबिक मानसून कमजोर रहता है तो जीडीपी की विकास दर इस साल भी प्रभावित हो सकती है।
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