
मुंबई : अवैध तरीके से धन जुटाने की गतिविधियों के खिलाफ बाजार नियामक सेबी की सख्ती बनी हुई है। चालू वित्त वर्ष के दौरान उसने 150 से अधिक ऐसे मामलों का भंडाफोड़ किया। इनमें धोखाधड़ी के जरिये सीधे-सादे निवेशकों से करीब 13,000 करोड़ रुपये जुटाए गए।
मार्च में समाप्त हो रहे वित्त वर्ष के दौरान 100 से ज्यादा मामले ऐसे थे जो पब्लिक इश्यू की तरह के हैं। इनमें 2,200 करोड़ रुपये से अधिक की राशि शामिल है। 45 से अधिक मामले गैरकानूनी सामूहिक निवेश स्कीमों (सीआईएस) के हैं। इनसे 9,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जुड़ी है।
पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले ऐसे मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है। सेबी ने पब्लिक इश्यू जैसे मामलों में बीते दो वित्त वर्ष के दौरान करीब 110 के खिलाफ आदेश पारित किए। इसी दौरान सामूहिक निवेश स्कीमों के मामले में यह आंकड़ा 55 से अधिक रहा था।
उक्त आदेशों के विश्लेषण से पता चलता है कि आईपीओ जैसी योजनाओं में ज्यादातर मामले पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और ओडिशा के थे। जबकि सीआईएस के मामले ज्यादातर तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से रहे।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देश के बड़े हिस्से में इस तरह से अवैध धन जुटाया जा रहा है। बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं की कमी के साथ कानून की खामियों के चलते इसे बढ़ावा मिला है। नियामक को रोजाना सैंकड़ों परेशान निवेशकों से शिकायतें मिलती हैं। नए अधिकार मिलने के बाद सेबी ने चालू वित्त वर्ष के दौरान इन मामलों में तेजी से कार्रवाई की है।
यदि कंपनी 50 या इससे अधिक लोगों को इश्यू जारी करती है तो उसे खुद को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराना जरूरी है। तमाम अन्य बातों के साथ कंपनियों के लिए पब्लिक इश्यू के संबंध में प्रॉस्पेक्टस लाने की भी अनिवार्यता है।
गड़बड़ी करने वाली कुछ प्रमुख कंपनियों में रोज वैली कंस्ट्रक्शंस, रेमल इंडस्ट्रीज और एनवीडी सोलर शामिल हैं। इन्होंने ऊंचे रिटर्न का लालच देकर हजारों निवेशकों से फंड जुटाया। सीआईएस के मामलों में जिन फर्मों के खिलाफ कार्रवाई हुई, वे सेबी से रजिस्ट्रेशन लिए ही परिचालन कर रही थीं। इन्होंने निवेशकों को भारी-भरकम मुनाफे का लालच देकर अनधिकृत रूप से धन जुटाया था।
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