फिल्म समीक्षा: कमजोर फिल्म है बेवकूफियां

फिल्म समीक्षा: कमजोर फिल्म है बेवकूफियां

मुंबई। डायरेक्टर नूपुर अस्थाना की कमियों से भरी फिल्म बेवकूफियां के पीछे छुपा है एक इंट्रेस्टिंग आइडिया-रिशेसन के समय में प्यार। आज के टाइम में सेट ये फिल्म उस जेनरेशन को दिखाती है जिनके क्रेडिट कार्ड उनके स्टेटस सिंबल हैं और जो लंच ब्रेक में डिजाइनर सैंडल्स की शॉपिंग करने में अपना टाइम स्पेंट करते हैं।

मोहित यानी आयुष्मान खुराना एक एयरलाइन कंपनी में काम करने वाला मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव है, जिसके पास सबकुछ है। उसे प्रमोशन मिलने वाला है, उसकी एक खूबसूरत गर्लफ्रेंड है जो फाइनेंशियल इंडिपेंडटेंट है और ईएमआई पर खरीदी हुई ब्रांड न्यू कार है। पर एक दिन वो अपनी नौकरी खो देता है। अच्छी बात है कि मायरा यानी सोनम कपूर अपनी बैंक जॉब में अच्छा कमा लेती है। और वो इस बुरे वक्त में भी खुशी-खुशी मोहित का साथ देने को तैयार है।

ये ऐसा प्रिमाइस है जिसमें खूब सारा पोटेंशियल है, पर हबीब फैजल की आधी-अधूरी स्क्रिप्ट एक रिश्ते पर बेरोजगारी की वजह से बढ़नेवाले प्रभाव, इस विषय में कुछ खास दिलचस्पी नहीं लेती कि आखिर कब तक मोहित, मायरा की दया पर रहेगा? कब तक वो उसकी इज्जत कर पाएगी? ये सब कैसे उनके रिश्ते को बदल देता है? फिल्म में वहीं घिसा-पिटा हिरोइन का नाराज पिता है।

रिषी कपूर, वीके सहगल के किरदार में हैं जो रिटायर आईएस ऑफिसर है और मायरा का चिड़चिड़ा पिता है। इससे पहले की उसे पता चले कि मोहित अपनी जॉब खो चुका है। वो ये पहले ही साफ कर देता है कि उसकी बेटी मोहित से ज्यादा कमाती है और वो मायरा के लायक बिल्कुल नहीं है। फिल्म में ज्यादातर ह्यूमर मोहित और उसके होने वाले ससुर के रिश्ते पर टिका है। फिल्म का अंत काफी निराश करता है। मैं बेवकूफियां को पांच में 2 स्टार देता हूं।

 

Leave a comment