
नई दिल्ली। साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार अमरकांत का सोमवार को इलाहाबाद में निधन हो गया। वे 80 साल के थे। अमरकांत को हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकारों में शुमार किया जाता है।
यशपाल उन्हें गोर्की कहा करते थे। साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ के अलावा उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय पुरस्कार, यशपाल पुरस्कार जैसे अनेक सम्मानों से सम्मानित किया गया था। अमरकान्त का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगारा गांव में 1 जुलाई 1925 को हुआ था।
उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए किया। इसके बाद उन्होंने साहित्यिक सृजन का मार्ग चुना। बलिया में पढते समय उनका सम्पर्क स्वतन्त्रता आंदोलन के सेनानियों से हुआ। इसके बाद वे स्वतन्त्रता-आंदोलन से जुड गए। उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ एक पत्रकार के रूप में हुआ।
कहानीकार के रूप में उनकी ख्याति सन् 1955 में कहानी डिप्टी कलेक्टरी से हुई। उनकी कहानियों में जिन्दगी और जोंक,देश के लोग, मौत का नगर, कुहासा और उपन्यासों में सूखा पत्ता, काले उजले दिन, सुख जीवी, बीच की दीवार काफी चर्चित हुई। उनके द्वारा लिखे गए संस्मरण कुछ यादें, कुछ बातें और दोस्ती भी काफी चर्चित रहे।
Leave a comment