
नई दिल्ली : देश में पहली बार नई व्यवस्था के तहत मौद्रिक नीति की घोषणा की जाएगी। नए आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक सोमवार को ही शुरू हो गई।
समिति दो दिनों के विचार विमर्श के बाद यह तय करेगी कि वह इस बार विकास को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों में कटौती जरूरी है या नहीं। जानकारों का कहना है कि खुदरा महंगाई और वैश्विक हालात को देखते हुए एमपीसी की पहली नीति में ब्याज दरों को मौजूदा स्तर पर ही रखने की उम्मीद ज्यादा है।
हालांकि कई जानकार यह भी मानते हैं कि आने वाले महीनों में ब्याज दरों में कटौती की मजबूत संभावना है। देश में यह पहला मौका होगा जब आरबीआई गवर्नर के वीटो अधिकार के बगैर मौद्रिक नीति की घोषणा होगी। मौद्रिक नीति इस बार सरकार की तरफ से नामित तीन सदस्यों के अलावा आरबीआइ के गवर्नर और दो डिप्टी गवर्नर वाली मौद्रिक नीति समिति करेगी।
आरबीआई गवर्नर समिति के अध्यक्ष जरूर होंगे। उनके पास वीटो का अधिकार नहीं होगा। यानी समिति के सदस्य जो तय करेंगे, उसके मुताबिक ही अंतिम फैसला होगा। गवर्नर का वोट भी सामान्य सदस्यों की तरफ ही होगा।
जब सदस्यों के बीच टाई होगा तो आरबीआई गवर्नर का वोट निर्णायक होगा। अभी तक की जो व्यवस्था थी, उसमें आरबीआई गवर्नर एक समिति के सुझाव के आधार पर ब्याज दरों को लेकर फैसला करता था। लेकिन अंतिम फैसला आरबीआई गवर्नर का ही होता था।
वैसे अगस्त, 2016 में खुदरा महंगाई की दर काफी नीचे रही है। खास तौर पर दालों व सब्जियों की कीमतों में नरमी का रुख रहा है। मानसून की स्थिति बहुत अच्छी रहने से उम्मीद है कि खाद्यान्नों की कीमतें निकट भविष्य में तेजी से नहीं बढ़ेंगी।
साथ ही औद्योगिक उत्पादन की स्थिति भी बहुत खराब है। देश में नए निवेश भी नहीं हो रहे हैं। बैंकों की तरफ से ऋण देने की रफ्तार बहुत सुस्त है। इससे उम्मीद की जा रही है कि इस बार नहीं हो तो अगले कुछ महीनों के भीतर आरबीआई ब्याज दरों में नरमी जरुर लाएगा।
वैसे मंगलवार को पेश होने वाली मौद्रिक नीति में ब्याज दरों के अलावा भी कई बातें होंगी। मसलन, सभी की नजर नए गवर्नर पटेल की उन कदमों पर होगी जिनसे वह देश के बैंकिंग सेक्टर को नई दिशा देने की कोशिश करेंगे।
यह देखना दिलचस्प होगा कि पटेल ने पिछले तीन वर्षों के दौरान जिन समितियों की अध्यक्षता की और जिन समितियों की रिपोर्ट पूरी तरह से लागू नहीं हो पाईं, उन्हें अमल में लाने के लिए वह क्या कदम उठाते हैं। केंद्र सरकार की वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने के लिए वह किस तरह की घोषणाएं करते हैं।
यह पहले ही तय हो चुका था कि इस बार प्रधानमंत्री जन धन योजना का अगला चरण शुरू किया जाएगा। ऐसे में पटेल गांव-गांव बैंकिंग सेवाओं को पहुंचाने के लिए क्या करते हैं, इसकी भी प्रतीक्षा की जा रही है।
इसी तरह से देश में एक मजबूत व सक्षम ऋण बाजार स्थापित करने के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के अधूरे काम को पूरा करने के लिए पटेल क्या कदम उठाते हैं, इसका भी सब इंतजार कर रहे हैं।
फंसे कर्जे (एनपीए) की समस्या से निपटने में बैंकों को सक्षम बनाने उर्जित पटेल की एक बड़ी अहम जिम्मेदारी है। देखना होगा कि वह अब इस बारे में क्या कदम उठाते हैं।
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