
उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी (बनारस या वाराणसी) प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र भी है। इस क्षेत्र से जुड़े़ बुनकरों को उम्मीद थी कि चुनाव बाद उनकी स्थिति में भी बदलाव आएगा, लेकिन बीते डेढ़ वर्षो में ऐसा नहीं हो पाया। बुनकरों के चेहरे की चमक लौटाने के लिए केंद्र ने ई-बाजार मॉडल के रूप में हाईटेक कदम भी उठाया, लेकिन यह योजना भी फ्लॉप साबित हुई। बनारस में ई-कॉमर्स के माध्यम से शुरू की गई इस योजना को ई-बाजार मॉडल का नाम दिया गया था। कपड़ा मंत्रालय ने स्नैपडील और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को बनारसी साड़ी उद्योग में उतारा था, लेकिन इससे आम बुनकरों को कोई फायदा नहीं हुआ। दरअसल, साड़ी कारोबार को बढ़ाने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई थी, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ सकी। डाक विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, बीते सात महीने में विभिन्न साइटों के जरिये केवल 70 ऑर्डर भेजे गए है। डाक विभाग के एक अधिकारी ने बताया, विश्वेश्वरगंज मुख्य डाकघर में स्नैपडील का काउंटर भी इस उद्देश्य से खोला गया था कि बुनकर यहां आएं और अपने ड्रेस मैटेरियल को ऑनलाइन कर सीधा लाभ कमाएं, लेकिन उनकी आमद भी उत्साहजनक नहीं रही।
उन्होंने कहा, बुनकर चाहता है कि बनारसी साड़ी करघे से उतरते ही हाथोंहाथ बिक जाएं और उससे प्राप्त आय से उधार चुकता करने के साथ ही परिवार के लिए भी कुछ बचाया जा सके, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। वही, दूसरी ओर स्नैपडील के इंचार्ज प्रदीप सिंह के मुताबिक, बुनकर का माल खरीदकर एक निश्चित समय के भीतर भुगतान करने के लिए बनारस में एक डिपो खोलने की योजना पर विचार चल रहा है। इससे अच्छे परिणाम मिलने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया का चाहे जितना प्रचार किया जाए, लेकिन पावरलूम कारोबार से जुड़े यहां के करीब 2 करोड़ बुनकर इससे पूरी तरह से अनजान है। इन बुनकरों को ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग, ऑनलाइन लेनदेन के तौर-तरीके की कोई जानकारी नहीं है।
Leave a comment