
EV Charging Technology: इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के युग में बैटरी चार्जिंग की चिंता एक बड़ी बाधा बनी हुई है। लंबी यात्राओं के दौरान स्टॉप-एंड-चार्ज की मजबूरी न केवल समय बर्बाद करती है, बल्कि रेंज एंग्जायटी को भी बढ़ावा देती है। लेकिन अब एक ऐसी तकनीक सामने आई है, जो इस समस्या का दूर कर सकती है। JUST IMAGINE - आप सड़क पर इलेक्ट्रिक कार चला रहे हैं, जो खुद-ब-खुद चार्ज हो रही है, बिना किसी प्लग या रुकावट के। दरअसल, फ्रांस में हाल ही में डायनामिक वायरलेस चार्जिंग का परीक्षण शुरू किया है, जो दुनियाभर के विशेषज्ञों का ध्यान खींच रहा है।
कैसे काम करता है वायरलेस रोड चार्जिंग?
जानकारी के अनुसरा, यह तकनीक इंडक्शन कॉइल्स पर आधारित है, जो सड़क की सतह के नीचे दबी हुई होती हैं। इन कॉइल्स से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र वाहन के नीचे लगे रिसीवर कॉइल्स में विद्युत धारा पैदा करता है, जो सीधे बैटरी को चार्ज करता है। खास बात यह है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह वायरलेस है, जिससे वाहन की गति पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा। चाहे आप 50किमी/घंटा पर चलें या 120किमी/घंटा। इसके अलावा सेंसर और सॉफ्टवेयर की मदद से सिस्टम वाहन की सटीक स्थिति का पता लगाकर ऊर्जा ट्रांसफर करता है।
फ्रांस के 'चार्ज ऐज यू ड्राइव' प्रोजेक्ट में यह तकनीक 300किलोवाट से अधिक पीक पावर और 200किलोवाट औसत पावर प्रदान कर रही है। लैब टेस्ट्स में इसकी दक्षता 90प्रतिशत तक पाई गई है, जो पारंपरिक वायर्ड चार्जिंग से कहीं बेहतर है। यह न केवल ऊर्जा हानि को कम करता है, बल्कि सड़क की मजबूती को भी बनाए रखता है, जो ट्रक ट्रैफिक के 25साल के सिमुलेशन टेस्ट में कॉइल्स बिल्कुल सामान्य रहीं।
फ्रांस का ऐतिहासिक परीक्षण
बता दें, पेरिस से लगभग 40किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित A10मोटरवे पर 27अक्टूबर 2025को यह परीक्षण शुरू हुआ। यह दुनिया का पहला ऐसा मोटरवे है, जहां सामान्य ट्रैफिक के बीच इलेक्ट्रिक वाहन चार्ज हो रहे हैं। प्रोजेक्ट का नेतृत्व VINCI Autoroutes कर रही है, जिसमें Electreon (तकनीक प्रदाता), VINCI Construction (इंफ्रास्ट्रक्चर), Gustave Eiffel University (टेस्टिंग) और Hutchinson (सेंसर) जैसे पार्टनर्स शामिल हैं।
परीक्षण में चार प्रकार के वाहन उतर आए हैं: एक हेवी-ड्यूटी ट्रक, यूटिलिटी वैन, पैसेंजर कार और बस। ये प्रोटोटाइप वाहन रोजाना इस सेगमेंट पर दौड़ रहे हैं, जहां सड़क के नीचे कॉइल्स लगे हैं। शुरुआती रिजल्ट्स बेहद उत्साहजनक हैं—वास्तविक ट्रैफिक कंडीशंस में भी सिस्टम 200-300 किलोवाट पावर ट्रांसफर कर रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, यह तकनीक कार्बन उत्सर्जन को काफी कम कर सकती है और कच्चे माल की खपत घटा सकती है। परीक्षण 2026 तक चलेगा, जिसके बाद यूरोप में बड़े पैमाने पर विस्तार की योजना है।
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