ट्रंप के H-1B 'बॉम्बशेल' ने खाई 40000 से ज्यादा IT कर्मचारियों की नौकरी, व्हाइट हाउस का चौंकाने वाला खुलासा

ट्रंप के H-1B 'बॉम्बशेल' ने खाई 40000 से ज्यादा IT कर्मचारियों की नौकरी, व्हाइट हाउस का चौंकाने वाला खुलासा

H-1B Layoffs: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा कार्यक्रम कड़ा रुख अपनाते हुए एक कार्यकारी आदेश जारी किया है, जिसमें दावा किया गया है कि अमेरिकी आईटी कंपनियां अपने देश के 40,000 से अधिक पेशेवरों को नौकरी से निकाल रही हैं और उनकी जगह विदेशी H-1B वीजा धारकों को बिठा रही हैं। यह दावा न केवल अमेरिकी श्रमिकों के हितों की रक्षा का मुद्दा उठाता है, बल्कि वैश्विक टेक इंडस्ट्री में वीजा नीतियों पर बहस को नई ऊंचाई दे रहा है। व्हाइट हाउस के इस बयान ने कॉर्पोरेट जगत में हड़कंप मचा दिया है, जहां नई फीस और प्रवेश प्रतिबंधों से कंपनियों की योजनाएं प्रभावित हो रही हैं।

अमेरिकी IT कर्मचारियों की छंटनी

व्हाइट हाउस के फैक्ट शीट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2025 (FY 2025) में H-1B वीजा अनुमोदनों में भारी वृद्धि देखी गई है, जबकि इसी दौरान अमेरिकी आईटी कर्मचारियों की छंटनी भी चरम पर पहुंची। एक प्रमुख कंपनी को 5,189 H-1B वीजा स्वीकृत हुए, लेकिन उसी वर्ष उसने लगभग 16,000 अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से बाहर किया। इसी तरह, एक अन्य आईटी फर्म को 1,700 H-1B वीजा मिले, जबकि उसने जुलाई में ओरेगन में 2,400 अमेरिकी वर्कर्स की छंटनी की घोषणा की। कुल मिलाकर, व्हाइट हाउस का अनुमान है कि 40,000 से अधिक अमेरिकी आईटी पेशेवरों को उनकी नौकरियां गंवानी पड़ीं, जो सीधे H-1B हायरिंग से जुड़ी हुई हैं।

प्रशासन का कहना है कि यह वीजा कार्यक्रम कंपनियों को मजदूरी दबाने और अमेरिकी श्रमिकों को विस्थापित करने का हथियार बन गया है, खासकर आईटी आउटसोर्सिंग फर्मों द्वारा। कार्यकारी आदेश में स्पष्ट रूप से 'H-1B कार्यक्रम के दुरुपयोग और शोषण' का उल्लेख किया गया है, जो आईटी सेक्टर को लक्षित करता है।

कंपनियों पर पड़ रहा दबाव

इस विवाद के बीच, ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा पर एक बड़ा बदलाव किया है। अब नए आवेदनों के लिए 100,000 डॉलर (लगभग 84 लाख रुपये) की एकमुश्त फीस लगाई गई है। यह फीस 22 सितंबर 2025 से प्रभावी हो रही है और केवल नए आवेदकों पर लागू होगी। व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया है कि मौजूदा H-1B वीजा धारक जो अमेरिका से बाहर हैं, उन्हें दोबारा प्रवेश के लिए यह फीस नहीं चुकानी पड़ेगी। हालांकि, यह बदलाव टेक कंपनियों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है, क्योंकि कई फर्में विदेशी टैलेंट पर निर्भर हैं।

प्रशासन का तर्क है कि यह फीस अमेरिकी श्रमिकों के लिए अधिक नौकरियां खोलेगी और मजदूरी स्तर को ऊंचा रखेगी। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इससे अमेरिकी टेक इंडस्ट्री की वैश्विक प्रतिस्पर्धा कमजोर हो सकती है। उदाहरण के लिए, सिलिकॉन वैली की प्रमुख कंपनियां पहले ही चिंता जता चुकी हैं कि यह फीस नवाचार को प्रभावित करेगी।

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