CHHELLO SHOW FILM: भारत की इस फिल्म को किया गया ऑस्कर नॉमिनेशन में शामिल, जानें कहानी

CHHELLO SHOW FILM: भारत की इस फिल्म को किया गया ऑस्कर नॉमिनेशन में शामिल, जानें कहानी

नई दिल्ली: भारत में फिल्मों को ऑस्कर ऑवर्ड के लिए चुना गया है लेकिन अभी तक भारत की किसी भी फिल्म को ऑस्कर ऑवर्ड नहीं मिला है। वहीं अब पान नलिन की फिल्म छेलो शो को ऑस्कर नॉमिनेशन के लिए चुन विया गया है। पान नलिन द्वारा निर्देशित इस फिल्म का इंग्लिश में टाइटल 'लास्ट फिल्म शो' है।

दरअसल अकादमी पुरस्कार के 95वें संस्करण का आयोजन 13 मार्च 2023 को लॉस एंजिलिस में किया जाएगा। वार्षिक पुरस्कार समारोह ओवेशन हॉलीवुड के डॉल्बी थियेटर में होगा और दुनियाभर के 200 से अधिक क्षेत्रों में एबीसी पर इसका सीधा प्रसारण किया जाएगा। वहीं गुजराती फिल्म को ऑस्कर के नॉमिनेशन के लिए चुना गया है।इस फिल्म में फिल्म में भाविन राबरी, भावेश श्रीमाली, ऋचा मीणा, दीपेन रावल और परेश मेहता ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। इस फिल्म के निर्माता सिद्धार्थ रॉय कपूर हैं और इसका निर्माण रॉय कपूर फिल्म, जुगाड़ मोशन पिक्चर्स, मॉनसून फिल्म्स, छेलो शो एलएलपी और मार्क ड्वेल ने किया है।

क्या है फिल्म की कहानी 

वहीं इस फिल्म की कहानी की बात करें तो इस फिल्म में गुजरात के एक छोटे से गांव चलाला में रहने वाले नौ साल के बच्चे समय (भाविन राबरी) की कहानी है। भाविन राबरी एक चाय के दुकानदार दीपेन रावल का बेटा का रोल निभा रहा है। भाविन राबरी का पिता बचपन से भाविन राबरी पर आइडियल बॉय बनने पर जोर देता है लेकिन भाविन राबरी के सपने अलग है वो फिल्मों से प्यार करता है और अपने दोस्तों संग छुपकर फिल्में देखने जाता है। लेकिन बिना टिकट के फिल्म देख रहे सयम को जब थिएटर से बाहर निकाला जाता है, तो उसे साथ मिलता है, सिनेमा प्रॉजेक्टर चलाने वाले टेक्निशियन फजल (भावेश श्रीमाली) का। खाने का लालच देकर फजल समय को थिएटर के प्रॉजेक्शन बूथ में एंट्री कर लेता है।

उसके बाद समय रोजाना खाना लाता और फजल उसे फिल्में दिखाता। समय छिपकर सिनेमा की जादूई दुनिया में खो जाता है। वहीं फजल से सीखी चीजों से समय अपनी गैंग संग मिलकर टूटी साइकिल, परदे, बल्ब, मिरर जैसी कई चीजों का इस्तेमाल कर अपनी दुनिया वाली थिएटर बनाने की कोशिश में लग जाता है। दोस्तों संग समय के खुराफाती दिमाग की उपज उसकी अपनी सिनेमाई गैलेक्सी पिता को हैरान कर देती है। समय को उस दिन धक्का लगता है, जब थिएटर में टेक्नोलॉजी के आ जाने के बाद फजल को नौकरी से निकाल दिया जाता है। 

उसके बाद कहानी एक ऐसा मोड़ लेती है, जिसे देखकर आप अपने इमोशन पर काबू नहीं रख पाते हैं। प्रोजेक्टर्स के दौरान इस्तेमाल किए आइकॉनिक फिल्मों की रील्स को फैक्ट्री के मशीन में टूटकर पिघलते हुए प्लास्टिक में बदलता देखना, सिनेमा लवर्स के सपनों व भ्रम का टूटना सा प्रतीत होता है। उन रील्स की असलियत जानकर वाकई बहुत आघात पहुंचता है। रंग-बिरंगे प्लास्टिक में तब्दील हुए ये रील्स की डेस्टिनी महिलाओं की चूड़ियों तक आकर सिमट जाती है।

शायद यही वजह से जब ये सीन पर्दे पर आता है, तो कोई डायलॉगबाजी या लेक्चर नहीं होता है बल्कि होता है सन्नाटा। बच्चे (समय) के इल्यूशन के टूटने की चीख उस सन्नाटे पर साफ तौर से सुनाई पड़ती है. मशीन के शोर के बीच भी आप उस अनकही चीख को इग्नोर नहीं कर पाते हैं।इस हकीकत को देखकर एक छोटे बच्चे के टूटते सपने और उनपर उसका मैच्योर तरीके से रिएक्ट करना आपका दिल तोड़ता है।

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