साइबर अपराधियों ने डिजिटल अरेस्ट का ढूंढा नया पैतरा, आधार कार्ड और SIM का झांसा देकर ठगे लाखों रुपए

साइबर अपराधियों ने डिजिटल अरेस्ट का ढूंढा नया पैतरा, आधार कार्ड और SIM का झांसा देकर ठगे लाखों रुपए

Digital Arrest New Case: डिजिटल अरेस्ट स्कैम भारत में तेजी से फैल रही एक साइबर धोखाधड़ी है, जिसमें ठग खुद को पुलिस या सरकारी अधिकारी बताकर लोगों को डराते हैं और पैसे ऐंठते हैं। इस स्कैम में ठग अक्सर दावा करते हैं कि उस व्यक्ति के आधार कार्ड पर कई सिम कार्ड एक्टिव हैं, जो अवैध गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहे हैं। हाल ही में मुंबई में एक 79वर्षीय वकील और उनकी पत्नी इस स्कैम का शिकार बने, जहां उन्हें 64.6लाख रुपये का नुकसान हुआ। यह मामला सितंबर 2025में सामने आया और पुलिस ने तीन आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज की है।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, 3सितंबर 2025को मुंबई के मुंब्रा इलाके में रहने वाले 79वर्षीय वरिष्ठ वकील को एक व्हाट्सएप कॉल आया। कॉलर ने खुद को कानून प्रवर्तन एजेंसी का अधिकारी बताते हुए कहा कि वकील और उनकी पत्नी के नाम पर कई सिम कार्ड और बैंक अकाउंट फर्जी तरीके से खोले गए हैं, जो मनी लॉन्ड्रिंग और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहे हैं। ठगों ने फर्जी FIR, अरेस्ट वारंट और जांच रिपोर्ट जैसे दस्तावेज भेजकर मामले को विश्वसनीय बनाया। उन्होंने दंपति को 'डिजिटल अरेस्ट' में होने का दावा किया, यानी वे ऑनलाइन नजरबंद हैं और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए तुरंत पैसे ट्रांसफर करने होंगे।

डर की वजह से दंपति ने कई ट्रांजेक्शन में 64.6लाख रुपये ठगों के बताए बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए। पैसे मिलने के बाद ठगों का संपर्क टूट गया, तब जाकर पीड़ितों को धोखे का एहसास हुआ। जिसके बाद ठाणे पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (BNS) और आईटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत तीन आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज की और 5लाख रुपये बचाने में सफल रही। जांच जारी है और आरोपियों की तलाश की जा रही है।

डिजिटल अरेस्ट स्कैम क्या है?

यह स्कैम आमतौर पर एक फोन कॉल या मैसेज से शुरू होता है, जहां ठग खुद को टेलीकॉम विभाग या पुलिस का अधिकारी बताते हैं। वे कहते हैं कि आपके फोन नंबर या आधार कार्ड पर कई सिम कार्ड एक्टिव हैं, जो अपराधों में शामिल हैं - जैसे मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग ट्रैफिकिंग या महिलाओं और बच्चों की तस्करी। ठग डेटा ब्रीच से प्राप्त व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल करते हैं, जैसे नाम, पता, आधार डिटेल्स या बायोमेट्रिक डेटा, ताकि बातचीत विश्वसनीय लगे।

फिर कॉल को 'वरिष्ठ अधिकारी' को ट्रांसफर किया जाता है, जो वीडियो कॉल पर फर्जी दस्तावेज दिखाते हैं। जिसके बाद व्यक्ति को 'डिजिटल अरेस्ट' में डाल दिया जाता है, यानी उन्हें घर पर रहना पड़ता है, कैमरा ऑन रखना पड़ता है और किसी से संपर्क नहीं करने की हिदायत दी जाती है। ठग घंटों या दिनों तक निगरानी रखते हैं, फर्जी ट्रायल चलाते हैं और 'बेल' या 'वेरिफिकेशन' के नाम पर पैसे मांगते हैं। पेमेंट UPI, बैंक ट्रांसफर या क्रिप्टोकरेंसी से करवाया जाता है।

डिजिटल अरेस्ट स्कैम से कैसे बचें?

  1. कॉल वेरिफाई करें:कोई भी अनजान कॉल पर विश्वास न करें। सरकारी एजेंसियां फोन पर पैसे या डिटेल्स नहीं मांगतीं। कॉलर की पहचान आधिकारिक वेबसाइट से चेक करें।
  2. व्यक्तिगत जानकारी न शेयर करें:आधार, PAN, OTP या बैंक डिटेल्स कभी फोन पर न दें।
  3. तुरंत रिपोर्ट करें:संदिग्ध कॉल पर 1930 (साइबर क्राइम हेल्पलाइन) डायल करें या cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें।
  4. जागरूक रहें:परिवार के बुजुर्गों को ऐसे स्कैम के बारे में बताएं, क्योंकि वे आसान शिकार होते हैं।
  5. तकनीकी सुरक्षा:दो-कारक प्रमाणीकरण (2FA) इस्तेमाल करें और संदिग्ध ऐप्स से बचें।

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