
Chhat Puja: छठ महापर्व केवल सूर्य उपासना का पर्व नहीं, बल्कि बिहार की लोकसंस्कृति, परंपरा और आस्था का अनूठा संगम है। सूर्य देव की पूजा का यह पर्व हजारों वर्षों से चली आ रही मान्यताओं का प्रतीक है। इन्हीं मान्यताओं को साकार करता है औरंगाबाद का प्राचीन देवार्क सूर्य मंदिर, जो सूर्य के वैदिक नाम ‘अर्क’ को समर्पित है। ‘देवार्क’ शब्द का अर्थ ही है—‘अर्क देव का स्थान’। यह वही धरा है, जहां सूर्यदेव की ऊर्जा और मातृशक्ति की साधना का मिलन हुआ था।
वेदों में सूर्य के ‘अर्क’ रूप की उपासना
वेदों में सूर्य को ‘अर्क’ कहा गया है, और सूर्य नमस्कार के मंत्रों में ‘ॐ अर्काय नमः’ का उल्लेख मिलता है। ‘अर्क’ का अर्थ रस या ऊर्जा का स्रोत है—जो जीवन की शक्ति का प्रतीक है। इसी ऊर्जा की साधना का प्रतीक है देवार्क सूर्य मंदिर। इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर 6वीं से 8वीं सदी के बीच निर्मित हुआ माना जाता है, जबकि कई पौराणिक कथाएं इसे त्रेता या द्वापर युग से जोड़ती हैं।एक पुराण कथा बताती है कि जब शिव के गण माली और सुमाली ने कठोर तप किया, तब इंद्र के आदेश पर सूर्यदेव ने अपना ताप बढ़ाया। इस पर महादेव ने क्रोधित होकर सूर्य को त्रिशूल से भेद दिया, जिसके तीन हिस्से पृथ्वी पर गिरे—देवार्क (बिहार), लोलार्क (काशी) और कोणार्क (ओडिशा)।
अदिति के तप से प्रकट हुईं षष्ठी देवी
मान्यता है कि देवमाता अदिति ने प्रथम देवासुर संग्राम में देवताओं की हार के बाद देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। उनके तप से प्रसन्न होकर षष्ठी देवी प्रकट हुईं और अदिति को तेजस्वी पुत्र आदित्य (सूर्यदेव मार्तंड) का वरदान मिला, जिन्होंने असुरों पर विजय दिलाई। ज्योतिष में भी षष्ठी तिथि को विजय और संतान संरक्षण से जुड़ा माना गया है। इसी आधार पर यह स्थल छठ पर्व का पवित्र केंद्र बना।
देवार्क मंदिर की अनूठी संरचना और छठ की भव्यता
देवार्क सूर्य मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि यह अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख नहीं बल्कि पश्चिमाभिमुख है। पत्थरों पर की गई इसकी बारीक नक्काशी प्राचीन भारतीय शिल्पकला का शानदार उदाहरण है। छठ पर्व के दौरान यहां हजारों व्रती श्रद्धालु जुटते हैं, जो सूर्यदेव को डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।मान्यता है कि यही वह स्थल है जहां से छठ महापर्व की मूल परंपरा की शुरुआत हुई, और आज भी यहां सूर्य आराधना की वही आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस की जा सकती है।
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