सावन और नवरात्रि में नॉनवेज खाया तो होगा बुरा हाल! विज्ञान, भूगोल और धर्म ने भी लगाई मुहर?

सावन और नवरात्रि में नॉनवेज खाया तो होगा बुरा हाल! विज्ञान, भूगोल और धर्म ने भी लगाई मुहर?

Non-Veg on Navratri: सावन के बाद नवरात्रि आते ही मांसाहार को लेकर बहस फिर से तेज हो जाती है। त्योहारों के दौरान मांसाहार पर रोक लगाने, बाजार बंद करवाने और विरोध अभियान चलाने की पहलें होती हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या वाकई नवरात्रि में मांसाहार पूरी तरह वर्जित है? पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की परंपरा के दौरान मछली को शुभ माना जाता है और कई जगहों पर बलि भी दी जाती है, जिसका मांस प्रसाद के रूप में वितरित होता है।

इतिहासकार नृसिंह प्रसाद भादुड़ी के अनुसार खान-पान की परंपराओं पर भौगोलिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव होता है। बंगाल की नदियों से मिलने वाली मछली की प्रचुरता ने इसे वहां की संस्कृति और पूजा-अर्चना का हिस्सा बना दिया है।

आयुर्वेद और वैष्णव परंपरा में मांसाहार निषेध

वैष्णव परंपरा में चातुर्मास के दौरान शाकाहार अपनाने की परंपरा है, क्योंकि यह वर्षाकाल का समय होता है जब शरीर की पाचन अग्नि मंद हो जाती है। आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में मांसाहार करना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है क्योंकि भारी और चिकनाई वाला भोजन पचता नहीं और अपच, वात-कफ बढ़ने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यजुर्वेद की एक कथा के मुताबिक, इस दौरान भगवान विष्णु यानी वैश्वानर (पेट की अग्नि) शयन में चले जाते हैं, इसलिए इस समय शरीर के लिए हल्का भोजन लेना बेहतर माना जाता है। हालांकि, मॉडर्न मेडिसिन में मांसाहार को प्रोटीन का अच्छा स्रोत माना जाता है।

बंगाल से उत्तर भारत तक परंपराओं का फर्क

बंगाल की संस्कृति में मांसाहार, विशेषकर मछली, पूजा का हिस्सा है, जबकि बिहार और उत्तर भारत के कई हिस्सों में मांसाहार पर धार्मिक और स्वास्थ्य कारणों से रोक लगाई जाती है। बंगाल में नवरात्रि के दौरान मांसाहार सीमित मात्रा में प्रसाद के रूप में होता है, जिसे पूरे भोजन की जगह नहीं माना जाता। वहीं शाक्त परंपरा में भी दो रूप देखे जाते हैं — श्री कुल जहां देवियां शाकाहारी मानी जाती हैं, और काली कुल जहां मांसाहार और बलि पूजा का अभिन्न हिस्सा हैं। बंगाल के शक्तिपीठों में पशु बलि एक आम प्रथा है, जो धार्मिक आस्था का हिस्सा है।

भोजन: धर्म से ऊपर एक व्यक्तिगत मामला

भारत की विविध धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में भोजन को लेकर कोई एकमत नियम नहीं बन सकता। भोजन खुद में एक धर्म है और क्या खाना है, कब खाना है, यह पूरी तरह व्यक्तिगत आस्था, परंपरा और स्वास्थ्य की जरूरतों पर निर्भर करता है। नवरात्रि में मांसाहार को लेकर भी यही सच है कि इसे केवल प्रतिबंध या आलोचना के नजरिये से देखना उचित नहीं। इसे समझदारी, सम्मान और व्यक्तिगत निर्णय के आधार पर अपनाना ही बेहतर होगा, ताकि त्योहारों की खुशियों और धार्मिक भावना का अपमान न हो।

Leave a comment