
Panchkoshi Parikrama: प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हुए महाकुंभ का समापन 26 फरवरी को हो चुका है। इस दौरान बड़ी संख्या में भक्त, साधु-संत और नागा साधु संगम में डुबकी लगाने पहुंचे थे। बता दें, इस समय महाकुंभ में स्नान करने के बाद नागा साधु भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे हुए हैं। जहां वह मसान की होली खेलेंगे। लेकिन क्या आप जानते है होली से पहले नागा साधुओं को काशी में पंचकोशी परिक्रमा करनी होगी। जिसकी शुरुआत 05 मार्च से होगी।
पंचकोशी परिक्रमा करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में आइए जानते है पंचकोशी परिक्रमा क्या है? नागा साधु के लिए कितनी जरूरी है?
पंचकोशी परिक्रमा क्या है?
पंचकोशी परिक्रमा का अर्थ है पांच कोस की यात्रा करना। बता दें, प्रयागराज तीर्थ पांच योजन और बीस कोस तक फैला है। जिसमें अंतर्वेदी, मध्यवेदी, बहिर्वेदी तीन वेदियां हैं। इन्हीं वेदियों से गंगा-यमुना नदियों के 6 पवित्र घाट निकलते है। ऐसे में धार्मिक रूप से पंचकोशी परिक्रमा का विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने के बाद पंचकोशी परिक्रमा जरूर करनी चाहिए।
बता दें, पंचकोशी परिक्रमा की शुरुआत मणिकर्णिका घाट से होती है। इसके बाद ये परिक्रमा कर्दमेश्वर, भीमचंडी, रामेश्वर, शिवपुर, कपिलधारा से होते हुए वापस मणिकर्णिका घाट पर आकर ही खत्म हो जाती है।
पंचकोशी परिक्रमा का महत्व
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो पंचकोशी परिक्रमा करने से आत्मा शुद्ध होती है और सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती है। इसी के साथ जीवन में सुख-शांति भी बनी रहती है। पंचकोशी परिक्रमा करने वालों के पापों का नाश होता है। पंचकोशी परिक्रमा करने से पांच विकारों काम, क्रोध, मोह, मद और लोभ से मुक्ति मिलती हैं।
नागा साधु के लिए जरूरी हैं पंचकोशी परिक्रमा
ऐसा कहा जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने के बाद नागा साधुओं को पंचकोशी परिक्रमा जरूर करनी चाहिए। इस दौरान नागा साधु धार्मिक स्थलों के दर्शन करते हैं। इसी के साथ वह अपने आराध्यदेव के स्थल पर भी जाते है। पंचकोशी परिक्रमा करने से नागा साधुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है। पंचकोशी परिक्रमा करने से नागा साधुओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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