
Nitish Kumar: बिहार की राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक, नीतीश कुमार एक बार फिर राज्य की बागडोर संभालने जा रहे हैं। विधानसभा चुनावों में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के बाद गठबंधन दलों ने सर्वसम्मति से नीतीश को नेता चुना और मुख्यमंत्री पद के लिए उनका नाम तय किया। 243सीटों वाली विधानसभा में एनडीए ने 202सीटों पर कब्ज़ा जमाकर एक बार फिर मजबूत सरकार बनाने का रास्ता साफ किया है। इसमें बीजेपी के 89और जेडीयू के 85विधायकों के अलावा लोजपा (रामविलास) के 19, हम के पांच और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के चार विधायक शामिल हैं।
20साल की यात्रा, 10वीं बार शपथ
74वर्षीय नीतीश कुमार के लिए यह मुख्यमंत्री के रूप में दसवां कार्यकाल होगा—एक ऐसा रिकॉर्ड जो आधुनिक भारतीय राजनीति में कम ही देखने को मिलता है। उनका सफर 2000में शुरू हुआ था जब उन्होंने पहली बार सिर्फ सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री पद संभाला था। उसके बाद 2005और 2010में बीजेपी के साथ गठबंधन कर वे दो बार बहुमत के साथ सत्ता में आए। उनके नेतृत्व में बिहार ने राजनीतिक स्थिरता और कई विकास योजनाओं का अनुभव किया, हालांकि बीच-बीच में गठबंधन बदलने की वजह से राजनीति में हलचल भी बनी रही।
गठबंधन बदलने की दास्तान
नीतीश कुमार की राजनीति को उनकी अनोखी गठबंधन-रणनीति के लिए भी जाना जाता है। 2013में नरेंद्र मोदी के पीएम उम्मीदवार बनने के बाद उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ा, फिर आरजेडी और कांग्रेस के समर्थन से सरकार चलाई। 2015का महागठबंधन हो, 2017में अचानक उसका टूटना या 2022में फिर सरकार गिराकर बीजेपी के विरोध में जाना—उनके हर फैसले ने बिहार की राजनीति को नया मोड़ दिया। आखिरकार 2024के शुरुआती महीनों में उन्होंने एक बार फिर कमल का हाथ थाम लिया था।
आलोचनाओं के बीच पलट दिया खेल
2025 के विधानसभा चुनावों से पहले कई राजनीतिक विश्लेषकों ने नीतीश और जेडीयू के कमजोर पड़ने की भविष्यवाणी कर दी थी। उनके पूर्व सहयोगी प्रशांत किशोर ने तो सीटें 25 के नीचे आने का दावा किया था। लेकिन नतीजे कुछ और ही कहानी लेकर आए—जेडीयू ने 85 सीटें जीतकर 2020 के मुकाबले लगभग दोगुनी ताकत हासिल कर ली। इस अप्रत्याशित वापसी ने न केवल आलोचकों को चौंकाया, बल्कि यह भी साबित किया कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार अभी भी निर्णायक भूमिका में हैं।
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