
Delhi Pollution: दिल्ली की बढ़ती वायु प्रदूषण समस्या में बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालने वाला एक नया अध्ययन सामने आया है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के विश्लेषक के अनुसार, 8से 9साल के बच्चों द्वारा सांस में खींचे गए PM2.5का लगभग 40%हिस्सा फेफड़ों के सबसे गहरे क्षेत्र यानी ‘डीप लंग्स’ में जमा हो जाता है। वहीं, शिशुओं में यह प्रतिशत 30%है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि मोटे कण PM10का केवल 1-4%ही गहरे फेफड़ों तक पहुंच पाता है, क्योंकि अधिकांश नाक या गले में फंस जाते हैं।
बच्चों के लिए अधिक संवेदनशील
डॉ. कुमार ने बताया कि नवजात से किशोरावस्था तक बच्चों के फेफड़े विकासशील होते हैं, उनकी श्वसन नलिकाएं संकरी हैं और वे वयस्कों की तुलना में तेजी से सांस लेते हैं। यही कारण है कि PM2.5का प्रभाव बच्चों में अधिक गंभीर होता है और यह लंबे समय तक फेफड़ों में जमा रहता है। डॉ. कुमार ने चेतावनी दी कि बच्चों के फेफड़ों और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए PM2.5के संपर्क को कम करना सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता होनी चाहिए।
अध्ययन चेन्नई और वेल्लोर पर आधारित है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि ये पैटर्न पूरे देश में समान हैं। विश्लेषण से पता चला कि मोटे कण PM10मुख्य रूप से सिर (55-95%) और श्वसन नली (3-44%) में जमा होते हैं, जबकि महीन कण PM2.5और PM1सिर (36-63%) और फेफड़ों (28-52%) में जमा होते हैं। पल्मोनरी क्षेत्र में जमा कण धीरे-धीरे हटते हैं, जिससे लंबे समय तक शरीर में रहते हैं।
नीतिगत सुधार की आवश्यकता
दिल्ली में 18 अक्टूबर से 16 नवंबर तक PM2.5 हर दिन प्रमुख प्रदूषक रहा। इसका अर्थ है कि वायु प्रदूषण का असली कारण धूल (PM10) नहीं, बल्कि वाहनों, उद्योगों, पावर प्लांट और कचरा जलाने से उत्पन्न PM2.5 है। डॉ. कुमार ने चेताया कि केवल धूल नियंत्रण उपाय PM2.5 पर असर नहीं डाल सकते। उन्होंने NCAP 2.0 को PM2.5 के स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर बताया, ताकि वायु गुणवत्ता सुधार सके और बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा हो सके।
Leave a comment