Loksabha Election 2024: सपा के लिए कितने जरूरी है ‘ठाकुर’ वोटर? पार्टी इस फार्मूले से बढ़ रही आगे

Loksabha Election 2024: सपा के लिए कितने जरूरी है ‘ठाकुर’ वोटर? पार्टी इस फार्मूले से बढ़ रही आगे

Loksabha Election 2024: एक पुरानी राजनीतिक कहावत है कि रायसीना हिल्स का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है।2024 के लोकसभा चुनाव का रण शुरू हो गया है। उत्तर प्रदेश में इस वक्त सियासी तापमान बढ़ा हुआ है। समाजवादी पार्टी और राजा भइया के गठबंधन की सुगबुगाहट तेज हो गई।

लोकसभा चुनाव का सियासी तानाबाना बुना जाना शुरू हो गया है। भाजपा मिशन 80 का टारगेट लेकर चल रही है। इसके लिए वो पूरजोर कोशिशों में लगी है। आए दिन तमाम योजनाओं का शिलांन्यास किया जा रहा है तो साथ ही भाजपा समाजवादी पार्टी की खामियों की बताने में पीछे नहीं हट रही। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक फॉर्मूले यानी PDA को लेकर चल रही है। समाजवादी पार्टी भी पेपरलीक मामले और सरकार के कमियों को गिनाने में पीछे नहीं हट रही।

हो सकता है गठबंधन 

लेकिन भाजपा जिस मजबूत वोट बैंक के साथ उत्तर प्रदेश में खड़ी है उसे महज PDA से मुकाबला नहीं किया जा सकता इसलिए सियासी गलियारे में इसकी सुगबुगाहट तेज हो गई है कि रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के साथ पार्टी का गठबंधन हो सकता है दरअसल हाल ही में सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने राजा भैया से मुलाकात की थी उस दौरान नरेश उत्तम पटेल ने राजा भैया की बात अखिलेश यादव से भी कराई थी। विधानसभा चुनाव अखिलेश के साथ तल्ख हुए रिश्ते के बाद अब राजा भैया के सुर नरम हुए। राजा भैया ने कहा कि, मैंने अपने 28 साल के राजनीतिक जीवन में से 20 साल सपा को दिए हैं। मेरे लिए सपा पहले आती है और मेरे लिए यह कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है।’

ठाकुरों का था बोलबाला

दरअसल, जब मुलायम सिंह का दौर था तो उस दौरान समाजवादी पार्टी के सियासी एजेंडे में ठाकुर नेता अहम हुआ करते थे। मुलायम सिंह के राइट हैंड रेवती रमण सिंह, मोहन सिंह और ठाकुर अमर सिंह जैसे क्षत्रीय नेता हुआ करते थे। सपा का कोर वोटबैंक यादव और मुस्लिम के बाद ठाकुर बन गया था, सपा की सरकार में ठाकुरों का बोलबाला रहा। साल 2004 से 2007 तक सपा में अमर सिंह की तूती बोलती थी।

दूर हुए ठाकुर वोटर

लेकिन जब सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथ में आई तो ठाकुर नेता और वोटर दोनों ही दूर हो गए। अखिलेश ने ठाकुरों की जगह ओबीसी और दलित नेताओं को सियासी अहमियत देना शुरू किया। दूसरी तरफ, योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह के रूप में बीजेपी के पास ठाकुर नेता है, जिनके सामने सपा के पास कोई दमदार ठाकुर चेहरा नहीं रह गया है। उत्तर प्रदेश की सियासत में भले ही ठाकुर छह फीसदी हो, लेकिन राजनीतिक रूप से काफी ताकतवर माने जाते हैं। यही कारण है कि हमेंशा से ठाकुर अपनी आबादी की तुलना में दो गुना विधायक और सांसद चुने जाते रहे हैं। ऐसे में अगर सपा के साइकल को राजा भईया का साथ मिल जाता है तो पार्टी को बड़ा सियासी फायदा मिल सकता है। अब ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा की किसकी कोशिशे कामयाब होंगी किसको मिलेगी सीख। 

Leave a comment