घट रहा है गोवर्धन पर्वत का वजन! जानें इसके पीछे की वजह

घट रहा है गोवर्धन पर्वत का वजन! जानें इसके पीछे की वजह

नई दिल्ली: हिंदू मानयताओं के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस साल 26 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा है। भगवान श्री कृष्ण के लिए 56 प्रकार के भोग तैयार किए जाते है। परंतु बहुत कम लोग ही जानते है कि पुलस्त्य ऋषि द्वारा गोवर्धन पर्वत को एक श्राप मिला हुआ है,जिसके कारण वे प्रतिदिन कम होते जा रहे है।

पुलस्त्य ऋषि क्यों हुए क्रोधित

पौराणिक कथा के मुताबिक,प्राचीन समय में तीर्थयात्रा करते हुए पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे,तो इसकी सुंदरता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गए। तब उन्होंने द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए,मैं उसे काशी में स्थापित कर वहीं रहकर पूजन करूंगा। द्रोणाचल यह सुनकर दुखी हो गए, लेकिन गोवर्धन पर्वत ने ऋषि से कहा कि मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं लेकिन मेरी एक शर्त है। आप मुझे जहां रख देंगे मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। पुलस्त्य ने गोवर्धन की यह बात मान ली। फिर गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं। आप मुझे काशी कैसे ले जाएंगे? तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि मैं अपने तपोबल से तुम्हें अपनी हथेली पर उठाकर ले जाऊंगा। तब गोवर्धन पर्वत ऋषि के साथ चलने के लिए सहमत हो गए।

रास्ते में ब्रज आया, उसे देखकर गोवर्धन सोचने लगे कि भगवान श्रीकृष्ण-राधा जी के साथ यहां आकर बाल्यकाल और किशोर काल की बहुत सी लीलाएं करेंगे। तब उनके मन में यह विचार आया कि वह यहीं रूक जाएं। यह सोचकर गोवर्धन पर्वत पुलस्त्य ऋषि के हाथों में और अधिक भारी हो गया। जिससे ऋषि को विश्राम करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसके बाद ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज में रखकर विश्राम करने लगे। ऋषि ये बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं रखना नहीं है। कुछ देर बाद ऋषि पर्वत को वापस उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि ऋषिवर अब मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता। मैंने आपसे पहले ही कहा था कि आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। तब पुलस्त्य उसे ले जाने की हठ करने लगे, लेकिन गोवर्धन वहां से नहीं हिले।

वहीं तब ऋषि ने क्रोध में आकर उसे श्राप दिया कि तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया। अत: आज से प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होता जाएगा। फिर एक दिन तुम धरती में समाहित हो जाओगे। तभी से गोवर्धन पर्वत तिल-तिल करके धरती में समा रहा है। कहा जाता है कि कलियुग के अंत तक यह धरती में पूरा समा जाएगा।

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