
The Nightingale Of Bihar, Sharda Sinha:भारतीय लोक संगीत की दुनिया में एक ऐसी आवाज़ जिसने दिलों को गहराई से छूकर शांत किया। जिसने कभी अपनी आवाज़ से धमक नहीं मचाई, बल्कि श्रद्धा भाव का असली मतलब समझाया। हम बात कर रहे हैं शारदा सिन्हा की, जिन्हें प्यार से 'बिहार कोकिला' कहा जाता था। उन्होंने भोजपुरी, मैथिली और मगही गीतों के जरिए बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। 01 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गाँव में जन्मीं शारदा सिन्हा ने संगीत को न केवल एक कला बनाया, बल्कि इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग भी बना लिया।
लेकिन 05 नवंबर 2024 को दिल्ली में 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। सेप्टिसीमिया से जूझते हुए उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा, ठीक छठ महापर्व के प्रथम दिन 'नहाय-खाय' पर। उनका जाना बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लाखों लोगों के लिए एक अपूरणीय क्षति है, खासकर उन लोगों के लिए जो हर छठ पर उनकी मधुर धुनों से चहक उठते थे।
साल 1974 में मिली पहली सफलता
बता दें, शारदा सिन्हा का संगीत प्रेम बचपन से ही था। पारंपरिक परिवार में पली-बढ़ीं शारदा ने क्लासिकल संगीत की औपचारिक शिक्षा ली और 1980 में ऑल इंडिया रेडियो व दूरदर्शन से जुड़कर अपनी पहचान बनाई। लेकिन उन्हें असली और बड़ी पहचान साल 1974 में मिली, जब उन्होंने अपना पहला भोजपुरी गीत गाया। यह गीत उनके करियर की नींव साबित हुआ, जो संघर्षों से भरा था। शुरुआती दिनों में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी जिद और लगन ने उन्हें पीछे नहीं हटने दिया।
1978 में आया उनका छठ गीत 'उग हो सुरुज देव' एक धमाका था। यह गीत छठ पूजा की भक्ति और प्रकृति की सुंदरता को इतनी गहराई से बयाँ करता था कि यह रातोंरात हिट हो गया। जो आज के समय में भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं। छठ के साथ उनका गहरा रिश्ता था, उन्होंने लगभग 62 छठ गीत गाए, जो नौ एल्बमों में समेटे गए। 2016 में एक दशक के बाद उन्होंने नए छठ गीतों के साथ वापसी की, जो आज भी घाटों पर गूंजते हैं।
विवाह और संस्कार गीतों को भी बनाया अमर
शारदा सिन्हा ने लोक गीत को ही नहीं, बल्कि विवाह और संस्कार गीतों को भी अमर बनाया। हल्दी, मंडप छवाई, कन्यादान, सोहाग और विदाई जैसे रस्मों पर उनके गीत बिहार की संस्कृति को जिंदा रखते हैं। उन्होंने कहा था कि ये गीत परिवार और पड़ोसियों की पुरानी पीढ़ी से सीखे गए हैं, जो बिहारी संस्कृति की जड़ें मजबूत करते हैं।
बॉलीवुड और राष्ट्रीय पटल पर धाकड़ एंट्री
मालूम हो कि शारदा सिन्हा की आवाज़ केवल लोक तक सीमित न रही। साल 1989 में सलमान खान की डेब्यू फिल्म "मैंने प्यार किया" में उन्होंने "काहे तो से सजना" गाया, जो भोजपुरी लोक शैली से प्रेरित था। इस गाने ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दिलाई। उसके बाद अनुराग कश्यप की "गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट 2" में "तार बिजली" और "चौफुटिया छोकरे" में "कौन सी नागरिया" जैसे गीतों को भी अपनी से पिरोया। साल 1994 की ब्लॉकबस्टर "हम आपके हैं कौन" में "बाबुल का गीत" उनके सबसे लोकप्रिय हिंदी गीतों में से एक है। उन्होंने मैथिली, भोजपुरी, मगही और हिंदी के अलावा देवी गीत जैसे "जगदंबा घर में दीयना बार आइलिन हो" भी गाए, जो शुभ अवसरों पर अनिवार्य हो जाते हैं।
2018 में मिला था पद्म भूषण
इसी के साथ शारदा सिन्हा को संगीत के क्षेत्र में अनेक पुरस्कार मिले। 1991 में पद्म श्री, 2018 में पद्म भूषण और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार उनकी उपलब्धियों के प्रमाण हैं। वे समस्तीपुर के वुमेंस कॉलेज में संगीत विभाग की प्रमुख रहीं और चार दशकों तक छात्राओं को सिखाया। उन्होंने भोजपुरी संगीत को व्यावसायिकता और अश्लीलता से बचाया, इसे सम्मानजनक ऊचाई दी। "मिथिला की बेगम अख्तर" के नाम से भी जानी जाने वालीं शारदा ने लोक और शास्त्रीय संगीत का ऐसा मिश्रण रचा कि उनकी आवाज़ भावनाओं की कोकिला बन गई।
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