मुस्लिम बहुल मुस्तफाबाद में BJP की ऐतिहासिक जीत, ओवैसी, कांग्रेस और AAP को पछाड़ा

मुस्लिम बहुल मुस्तफाबाद में BJP की ऐतिहासिक जीत, ओवैसी, कांग्रेस और AAP को पछाड़ा

Delhi Vidhan Sabha Chunav: दिल्ली चुनाव के नतीजों में मुस्तफाबाद विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट इस सीट पर 30,000वोटों से आगे हैं। यह खास जीत है क्योंकि बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले मोहन सिंह बिष्ट को उम्मीदवार बनाया था। बिष्ट पहले करावल नगर से विधायक थे।

बता दें कि,मुस्तफाबाद सीट मुस्लिम बहुल है। यहां मुस्लिम वोटर करीब 40प्रतिशत हैं। इसके अलावा ठाकुर और दलित समुदाय के वोटर हैं, जिनकी संख्या 12प्रतिशत और 10प्रतिशत के आसपास है। कुल मिलाकर, यहां लगभग 40प्रतिशत मुस्लिम और 60प्रतिशत हिंदू वोटर हैं। मुस्तफाबाद को दिल्ली के टॉप-5मुस्लिम इलाकों में गिना जाता है। यह सीट 2008के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई।

बीजेपी की रणनीति

उम्मीदवार चयन में सावधानी:मुस्तफाबाद सीट पर पहले बीजेपी के दावेदार जगदीश प्रधान थे। लेकिन अंत में पार्टी ने मोहन सिंह बिष्ट को मैदान में उतारा। बिष्ट का नेटवर्क इस इलाके में मजबूत था और उनकी छवि एक जमीनी नेता की थी। इसका फायदा बीजेपी को मिला।

ताहिर हुसैन और ओवैसी की एंट्री:आम आदमी पार्टी ने आदिल अहमद को उम्मीदवार बनाया, जो पूर्व विधायक हसन अहमद के बेटे हैं। लेकिन आखिरी वक्त में असदुद्दीन ओवैसी ने ताहिर हुसैन को भी चुनावी मैदान में उतारा। ताहिर हुसैन दिल्ली दंगे के आरोपी हैं और सुप्रीम कोर्ट से प्रचार की अनुमति मिली। उनकी एंट्री से चुनाव हिंदू बनाम मुस्लिम बन गया।

5मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतरे:मुस्तफाबाद से कुल 5मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इससे मुस्लिम वोटों में बंटवारा हुआ। कांग्रेस के अली मेहदी चौथे स्थान पर रहे, लेकिन उन्होंने मुस्लिम वोटों को विभाजित किया, जिसका फायदा आम आदमी पार्टी को नहीं मिला।

डोर टू डोर कैंपेन की सफलता:बीजेपी ने यहां डोर टू डोर कैंपेन पर जोर दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने मोर्चा संभाला। मोहन सिंह बिष्ट की जमीनी पकड़ और अनुराग की रणनीति ने बीजेपी को मुस्लिम बहुल सीट पर बड़ी जीत दिलाई।

आदिल का टिकट बदलने का नुकसान:2020में बीजेपी के जगदीश प्रधान को हाजी युनूस ने हराया था। इस बार आम आदमी पार्टी ने युनूस का टिकट बदलकर आदिल को मैदान में उतारा। आदिल मुस्लिम वोटरों के बीच समर्थन नहीं जुटा पाए और हिंदू वोटरों को भी अपनी तरफ नहीं खींच सके। इसका परिणाम आम आदमी पार्टी की हार के रूप में सामने आया।

अगर आदिल को मुस्लिम और हिंदू दोनों वर्गों का समर्थन मिलता, तो नतीजा बदल सकता था। इसके अलावा, आदिल ताहिर के पक्ष में होने वाले ध्रुवीकरण को भी खत्म नहीं कर पाए, जिससे पार्टी को नुकसान हुआ।

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