
Akola Riot: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें 2023 में महाराष्ट्र के अकोला में हुए साम्प्रदायिक दंगों की जांच के लिए हिंदू और मुस्लिम पुलिस अधिकारियों वाली SIT गठित करने का आदेश दिया गया था। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि SIT के अधिकारियों का चयन सुप्रीम कोर्ट खुद कर सकता है।
SIT बनाने का मिला था आदेश
इस फैसले से पहले 11 सितंबर, 2025 को जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक आराधे की बेंच ने अकोला दंगों के दौरान हुए कुछ अपराधों की जांच के लिए हिंदू और मुस्लिम समुदायों के पुलिस अधिकारियों की एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का अभूतपूर्व आदेश दिया था। साथ ही महाराष्ट्र पुलिस को पक्षपातपूर्ण जांच की वजह से फटकार लगाई थी।
दो जजों ने दिया अलग-अलग फैसला
वहीं, महाराष्ट्र सरकार ने इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका की। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विभाजित फैसला सुनाया था। इस मामले को लेकर दिलचस्प यह है कि उन्हीं जजों ने विभाजित फैसला दिया। एक ने पुनर्विचार की अनुमति दी, तो दूसरे जज ने इसे खारिज कर दिया। महाराष्ट्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के समक्ष दलील दी। उन्होंने कहा कि पुलिस बल धर्मनिरपेक्ष है। अगर हर दंगे की जांच पुलिस अधिकारियों को उनकी व्यक्तिगत धार्मिक आस्था के आधार पर सौंपी जाएगी तो ये एक खतरनाक मिसाल बनेगी।
चीफ जस्टिस की बेंच का कोर्ट के आदेश पर स्टे
पुनर्विचार याचिका में कहा गया कि एसआईटी गठित करने के निर्देश का पालन किया जाएगा, लेकिन राज्य ने इस निर्देश पर आपत्ति जताई है, क्योंकि ये संस्थागत धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर आघात है। वहीं अब चीफ जस्टिस की बेंच ने हिंदू और मुस्लिम अधिकारियों वाली SIT गठित करने के आदेश पर रोक लगा दी है।
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