अब महिलाएं नहीं कर पाएंगी 498A धारा का गलत इस्तेमाल, उत्पीड़न धारा को लेकर SC ने केंद्र को दिया बड़ा सुझाव

अब महिलाएं नहीं कर पाएंगी 498A धारा का गलत इस्तेमाल, उत्पीड़न धारा को लेकर SC ने केंद्र को दिया बड़ा सुझाव

Supreme Court On 498A: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और संसद से नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) में पत्नी उत्पीड़न पर IPCकी धारा 498Aकी जगह लेने वाले प्रावधानों में आवश्यक बदलाव करने का आग्रह किया है। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एक पत्नी द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दायर क्रूरता के मामले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।

सुप्रीम कोर्ट ने यह अनुरोध किया

अदालत ने कहा कि BNSकी धारा 85 और 86 में IPCकी धारा 498Aको शब्दशः शामिल कर दिया गया है। संसद से आग्रह है कि नए कानून को लागू करने से पहले व्यावहारिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए और पत्नी के झूठे आरोपों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 2010 के फैसले के संदर्भ में इस धारा में आवश्यक बदलाव किए जाएं। विचाराधीन मामले में अदालत ने इसे पति की घरेलू हिंसा और क्रूरता की शिकायत का बदला करार देते हुए पत्नी की एफआईआर को रद्द कर दिया।

स्वर्ग में बने रिश्ते को तोड़ना ठीक नहीं

कोर्ट ने कहा ऐसे मामलों में आरोपों की अति-तकनीकी तरीके से जांच करना विवाह संस्था के लिए प्रतिकूल है। कई बार, पत्नी के करीबी रिश्तेदार और माता-पिता छोटी-मोटी बातों को राई का पहाड़ बना देते हैं और नफरत के कारण विवाह को खत्म कर देते हैं। वह पुलिस को इस समस्या का इलाज मानते हैं और पुलिस में मामला दर्ज होने के बाद सुलह की संभावना कम हो जाती है।

छोटी-मोटी तकरार और असहमति

एक अच्छे विवाह की नींव एक-दूसरे की गलतियों को शामिल करते हुए सहनशीलता है। छोटे-मोटे झगड़े और मतभेद सांसारिक मामले हैं जिनके लिए स्वर्ग में बने रिश्ते को नहीं तोड़ना चाहिए। वैवाहिक विवादों के मुख्य शिकार बच्चे होते हैं। अदालत ने कहा कि हालांकि, क्रूरता और उत्पीड़न के वास्तविक मामलों में पुलिस तंत्र का सहारा लिया जाना चाहिए।

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