30 सालों में धूप के घंटे हुए कम, भारत में सूरज की रोशनी पर मंडरा रहा कौन-सा खतरा?

30 सालों में धूप के घंटे हुए कम, भारत में सूरज की रोशनी पर मंडरा रहा कौन-सा खतरा?

Sunlight Reduction In India:भारत आजकल धूप की कमी से जूझ रहा है। 300 से ज्यादा धूप वाले दिनों का दावा करने वाला यह देश अब बादलों की परत और हवा के प्रदूषण के कारण सूरज की किरणों से वंचित हो रहा है। हाल में हुए शोधों से पता चलता है कि पिछले तीन दशकों में धूप के घंटे तेजी से कम हुए हैं, जिसका असर कृषि, सौर ऊर्जा और स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। यह समस्या न केवल मौसम की बदलती प्रकृति को दर्शाती है, बल्कि मानवीय गतिविधियों के पर्यावरणीय परिणामों को भी उजागर करती है।

घटते धूप के घंटों का आंकड़ा

पिछले 30 सालों (1988-2018) में भारत के अधिकांश हिस्सों में धूप के घंटे औसतन 4-13 घंटे प्रति वर्ष कम हुए हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरलॉजी (IITM) और भारतीय मौसम विभाग (IMD) के संयुक्त अध्ययन के अनुसार, उत्तरी मैदानी इलाकों में यह गिरावट सालाना 13.1 घंटे की कमी को दर्शाती है। वहीं, पश्चिमी तट पर 8.6 घंटे, जबकि मध्य भारत में 4.7 घंटे की हानि दर्ज की गई।

अध्ययन में बताया गया कि यह 'सोलर डिमिंग' (सूर्य की रोशनी में कमी) का स्पष्ट संकेत है, जो 2024-25 में भी जारी रहा। सोलारगिस के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में भारत के अधिकांश क्षेत्रों में सौर विकिरण 3-10% तक घटा, जो लंबी अवधि के औसत से नीचे था। इसके अलावा क्षेत्रीय असमानता की बात भी कही गई है। दिल्ली जैसे उत्तरी शहरों में 1970-2006 के बीच सर्दियों में धूप 13% प्रति दशक घटी। 2024 का मानसून, जो लंबे समय के औसत से 8% अधिक वर्षा वाला रहा, ने बादलों को और घना कर दिया, खासकर मध्य भारत और पश्चिमी घाट में।

जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण बना कारण

इस समस्या का सबसे बड़ा कारण वायुमंडलीय एरोसोल (सूक्ष्म कण) हैं, जो औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों के धुएं, बायोमास जलाने और धूल भरी आंधियों से उत्पन्न होते हैं। ये कण सूर्य की किरणों को अवशोषित या परावर्तित कर देते हैं, साथ ही बादलों के निर्माण को बढ़ावा देते हैं। एरोसोल बादलों के लिए 'बीज' का काम करते हैं, जिससे बादल लंबे समय तक टिकते हैं और धूप को जमीन तक पहुंचने से रोकते हैं।

जलवायु परिवर्तन भी इसमें योगदान दे रहा है। बढ़ते तापमान से मॉनसून की अनियमितताएं बढ़ी हैं, जिससे जून-सितंबर के बीच धूप में तेज गिरावट आ रही है। IMD के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन जलाने से एरोसोल लोड बढ़ा है, जो सूर्य की किरणों को 0.86 वाट प्रति वर्ग मीटर प्रति वर्ष कम कर रहा है।  2025 के अध्ययन बताते हैं कि यह प्रवृत्ति 1990 के दशक से तेज हुई है, जब औद्योगीकरण चरम पर पहुंचा।

ऊर्जा, कृषि और स्वास्थ्य पर संकट

1.सौर ऊर्जा पर असर: भारत का सौर लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावाट है, लेकिन IIT दिल्ली के 2025 के अध्ययन के अनुसार, प्रदूषण से उपयोगी भूमि 29.3% तक सिमट गई है। 2024 में सौर उत्पादन में 3-10% की कमी आई, जो वित्तीय मॉडलों को प्रभावित कर रही है। बिफेशियल पैनल जैसी तकनीकें अपनाने की सलाह दी जा रही है, जो फैली रोशनी में भी ऊर्जा उत्पन्न करें।

2.कृषि और खाद्य सुरक्षा: फसलें सूर्य पर निर्भर हैं। कम धूप से खासकर मानसून-बाद की फसलें प्रभावित हो रही हैं, जिससे पैदावार घट सकती है। राजस्थान-गुजरात जैसे क्षेत्र, जहां पहले 3100 घंटे धूप मिलती थी, अब सौर ऊर्जा के लिए आदर्श नहीं रहे।

3.स्वास्थ्य पर पड़ा असर: विटामिन डी की कमी बढ़ रही है, भले ही सूर्य प्रचुर हो। शहरी जीवनशैली, गहरी त्वचा और प्रदूषण से 70-90% आबादी प्रभावित है, जो हड्डियों, रोग प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है।   

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