Tales Of History: कांग्रेस के दरवाजे आपके लिए खुले हैं…बस करनी होगी नसबंदी, भारत के इतिहास में अंकित है ये काला अध्याय

Tales Of History: कांग्रेस के दरवाजे आपके लिए खुले हैं…बस करनी होगी नसबंदी, भारत के इतिहास में अंकित है ये काला अध्याय

1976Nasbandi Programme: भारत की बढ़ती जनसंख्या हमेशा से चिंता का विषय रही है। 1951 से देश में बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए एक खास तरीका नसबंदी अपनाया जा रहा है। लेकिन 1970 के दशक में आपातकाल के दौरान जबरन नसबंदी एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गया।

1975 में आपातकाल के दौरान लाखों पुरुषों की जबरन नसबंदी कर दी गई थी। कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने इस अभियान को 'आक्रामक' तरीके से आगे बढ़ाया। इसमें गरीब आबादी सबसे बड़ा निशाना थी। यह वह समय था जब पुलिस पूरे गांव को घेर लेती थी और जबरन पुरुषों की नसबंदी कर देती थी। रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल के भीतर करीब 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई। इस दौरान गलत ऑपरेशन के कारण 2 हजार मासूम लोगों की भी मौत हो गई।

नसबंदी अभियान क्यों चलाया गया?

1951 में भारत की जनसंख्या लगभग 36।1 करोड़ थी। 1941-1951 के दशक में देश की जनसंख्या 1।26 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही थी। तब भारत के प्रमुख शहरी जनसांख्यिकी विशेषज्ञ आरए गोपालस्वामी ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि देश की जनसंख्या में हर साल 50 लाख लोगों की बढ़ोतरी होगी।

गोपालस्वामी की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम(National Family Planning Program)प्रारम्भ किया। ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया। इस अभियान के तहत गांव में घर-घर जाकर लोगों को परिवार नियोजन के बारे में जागरूक किया गया, परिवारों को केवल दो बच्चे पैदा करने और इन बच्चों के जन्म के बीच कम से कम दो साल का अंतर रखने के लिए प्रोत्साहित किया गया। लेकिन सरकार का यह अभियान असफल रहा।

वर्ष 1975 में भारत अनेक आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था। वर्षा औसत से कम थी, खाद्य उत्पादन गिर गया था, आयातित तेल की कीमत बढ़ गई थी, निर्यात राजस्व में गिरावट आई थी, मुद्रास्फीति सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर थी। दूसरी ओर, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का राजनीतिक जीवन भी उथल-पुथल में था।इसी दौरान इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी राजनीति में सक्रिय हो गये। दरअसल, देश में बड़े पैमाने पर नसबंदी अभियान चलाने का बीड़ा संजय गांधी ने ही उठाया था। हालाँकि उनके पास सरकार या पार्टी में कोई आधिकारिक पद नहीं था। उनकी एकमात्र योग्यता यह थी कि वह प्रधानमंत्री के पुत्र थे।

नसबंदी के नए तरीके अपनाए

नसबंदी के लिए न केवल जोर-जबरदस्ती से बल्कि कई छुपे तरीकों से भी दबाव डाला जाता था। सरकारी आदेश आया कि नसबंदी न कराने वाले कर्मचारियों की पदोन्नति या वेतन वृद्धि नहीं होगी। कुछ मामलों में तो बिना नसबंदी के वेतन तक रोक दिया गया। ड्राइविंग लाइसेंस, रिक्शा लाइसेंस, टैक्स लाइसेंस आदि के नवीनीकरण के लिए भी नसबंदी प्रमाणपत्र दिखाना अनिवार्य कर दिया गया है।जिन विद्यार्थियों के माता-पिता ने नसबंदी नहीं करायी थी, उन्हें स्कूल-कॉलेजों में जाने से रोका जाने लगा। बिना नसबंदी प्रमाण पत्र के अस्पतालों से मुफ्त इलाज बंद कर दिया गया। इस अत्याचार के सबसे बड़े शिकार समाज के गरीब तबके के लोग थे।

यहां तक ​​कि संजय गांधी ने कांग्रेस में शामिल होने के लिए 37 साल से कम उम्र के युवाओं के लिए नसबंदी की शर्त भी रखी थी। 29 मार्च 1976 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लखनऊ में यूथ कांग्रेस की रैली में संजय गांधी ने कहा था कि कांग्रेस के दरवाजे युवाओं के लिए खुले हैं। उनके लिए बस एक ही शर्त है। उसे हर महीने कम से कम दो लोगों की नसबंदी करनी होगी।आख़िरकार 21 महीने बाद 1977 में जब आपातकाल ख़त्म हुआ तो नसबंदी अभियान भी धीमा पड़ गया। लेकिन सरकार के इन दोनों फैसलों की काफी आलोचना हुई। अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी।

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