Explainer: क्या मुसलमानों की वजह से तेजी से बढ़ रही है देश की जनसंख्या? जानें क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े

Explainer: क्या मुसलमानों की वजह से तेजी से बढ़ रही है देश की जनसंख्या? जानें क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े

Muslim Population In India: आजकल चुनावी गलियारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान की खूब चर्चा है। राजस्थान के बांसवाड़ा में पीएम ने कांग्रेस के घोषणापत्र पर निशाना साधा था। इस दौरान उन्होंने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का बयान दोहराया कि 'देश की संपत्ति पर पहला हक मुसलमानों का है।' मोदी ने कहा, 'कांग्रेस का ये घोषणापत्र कह रहा है कि हम माताओं-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे, उसकी जानकारी लेंगे और फिर उस संपत्ति का बंटवारा करेंगे।'

पीएम मोदी के मुताबिक, 'ये संपत्ति इकट्ठा करके किसे बांटेंगे? जिनके अधिक बच्चे होंगे उनमें वितरण किया जाएगा। प्रधानमंत्री का इशारा मुसलमानों की ओर था। पीएम मोदी के इस बयान से राजनीतिक हंगामा मचना तय था और हुआ भी वही। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने पीएम पर पलटवार किया। पलटवार करने के लिए बीजेपी ने 9 दिसंबर 2006 के मनमोहन के भाषण का वीडियो शेयर करना शुरू कर दिया। पीएम मोदी ने जो कहा वह कितना सच है? क्या सच में मुसलमानों के अन्य धर्मों की तुलना में अधिक बच्चे हैं? सरकारी आंकड़ों के हवाले से समझें।

भारत में मुसलमानों की जनसंख्या कितनी?

भारत में आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। मतलब धार्मिक समूहों पर जनसंख्या का डेटा 13 साल पुराना है। किसी भी विश्वसनीय सरकारी एजेंसी ने धार्मिक समूहों के आंकड़ों को अद्यतन तक नहीं किया है। फिर भी विभिन्न सरकारी आंकड़े देश में मुसलमानों की स्थिति का खुलासा करते हैं। 2011 की जनगणना में 17.22 करोड़ मुसलमान गिने गए थे। उस समय भारत की जनसंख्या 121.08 करोड़ थी और मुसलमानों की हिस्सेदारी 14.2% थी। उससे पहले 2001 की जनगणना में मुसलमान 13.81 करोड़ थे। 2001 में देश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 13.43% थी।

जनगणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2001 से 2011 के बीच मुसलमानों की आबादी में 24.69 फीसदी का उछाल आया। हालाँकि, यह 10 वर्षों की अवधि में मुस्लिम आबादी में सबसे कम वृद्धि थी। 1991 से 2001 के बीच भारत में मुसलमानों की संख्या में 29.49% की वृद्धि हुई।

रोज़गार आंकड़ों में मुसलमानों की स्थिति

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) भी देश में श्रमिकों की संख्या पर नज़र रखता है। इसके मुताबिक देश के श्रम और कार्यबल में मुसलमानों की भागीदारी सबसे कम है. इन दोनों मामलों में मुसलमान पिछड़ रहे हैं। बेरोजगारी की बात करें तो मुसलमानों की हालत बेहतर है।उनमें बेरोज़गारी राष्ट्रीय औसत से भी कम है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) की जुलाई 2022 - जून 2023 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, देश की श्रम शक्ति में मुसलमानों की भागीदारी दर 32.5 है। जबकि श्रमिक जनसंख्या अनुपात 31.7 है। मुसलमानों में बेरोज़गारी दर 2.4 है जो राष्ट्रीय औसत 3.2 से कम है।

भारत के मुसलमानों में प्रजनन दर

देश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर जागरूकता बढ़ी है। इसका असर प्रजनन दर के आंकड़ों पर दिख रहा है। सभी धर्मों की महिलाएं अब पहले की तुलना में कम बच्चों को जन्म देती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (NFHS-5) के आंकड़ों के मुताबिक, केवल मुसलमानों में ही प्रजनन दर 'रिप्लेसमेंट लेवल' से अधिक है। 'प्रतिस्थापन स्तर' वह स्तर है जिस पर किसी देश की जनसंख्या स्थिर रहती है।NFHS-5 के मुताबिक, मुसलमानों में प्रजनन दर 2.36 है यानी हर मुस्लिम महिला अपने जीवन में इतने बच्चों को जन्म देती है। कुल मिलाकर भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2 है।

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