Skanda Shashti Vrat: हिंदू धर्म में प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाता है। माताओं के लिए इस व्रत का खास महत्व है। बता दें, स्कंद षष्ठी को कन्द षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। यह दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण व्रत है। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को दक्षिण भारत में स्कंद नाम से पूजा जाता है। इसलिए इस दिन भगवान कार्तिकेय को विधि-विधान से पूजा जाता है। चलिए जानते हैं, इस माह कब है स्कंद षष्ठी व्रत और इसका महत्व।
तिथि
स्कंद षष्ठी व्रत शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन रखा जाता है। पंचांग के अनुसार, यह तिथि 14 मार्च को रात 11 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 15 मार्च को रात 10 बजकर 9 मिनट पर होगी। उदयातिथि के अनुसार, 15 मार्च 2024, शुक्रवार के दिन स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाएगा।
महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन तारकासुर नामक राक्षस का भगवान कार्तिकेय ने वध किया था। इस दिन उनकी जीत के सम्मान में षष्ठी व्रत रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर आप स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय का पूजन करते हैं तो शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इसके साथ जीवन में सभी परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है। महिलाओं के लिए भी यह व्रत बेहद खास माना गया है। महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए और सुख-समृद्धि के लिए स्कंद षष्ठी व्रत रखती हैं।
पूजा विधि
स्कंद षष्ठी के शुभ दिन पर सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें। उसके बाद मंदिर को गंगाजल छिड़ककर स्वच्छ करें और भगवान कार्तिकेय का पूजन शुरू करें। बता दें, भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। इसलिए मंदिर में भगवान कार्तिकेय के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद मूर्ति पर फल, फूल, धूप, दीपक, सिंदूर, अक्षत और मौली अर्पित करें। उसके बाद मिष्ठान का भोग लगाएं और व्रत कथा पढ़ना शुरू करें। जब कथा आपकी सम्पूर्ण हो जाएं तो आरती करें और भोग को प्रसाद के रूप में घर के सदस्यों में बांट दें।
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