इस वायरस के बढ़ाई राज्यों की टेंशन, जानें कितना खतरनाक हैं वायरस

इस वायरस के बढ़ाई राज्यों की टेंशन, जानें कितना खतरनाक हैं वायरस

Zika Virus: देशभर में साल 2019 में कोरोना वायरस ने अपना भयवाह रुप दिखाया था,जिसकी वजह से कई लोगों की जान चली गई थी। लेकिन, अब इस वायरस का असर कम हो गया है, अब इससे जुड़े इक्के-दुक्के मामले ही सामने आ रहे है। इस बीच देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में जीका वायरस की दस्तक ने अन्य राज्यों के लोगों की भी चिंता बढ़ा दी है। इसके लक्षणों में बुखार होने के अलावा स्किन पर लाल धब्ब भी पड़ जाते हैं। सिर दर्द के साथ आंखों में सूजन और आखे लाल होना भी इसके प्रमुख लक्षणों में शामिल है।कभी-कभार यह समस्या एक सप्ताह से अधिक भी बनी रहती है।

बढ़ते मामलों ने बढ़ाई चिंता

मिली जानकारी के मुताबिक,मुंबई के चंबूर के रहने वाले एक व्यक्ति में जीका वायरस से संक्रमण की पुष्टि हुई है। इलाज के बाद फिलहाल वह स्वस्थ हैं।लेकिन इसके बढ़ते मामलों ने चिंता बढ़ा दी है। इस वायरस के अन्य पीड़ितों का पता लगाने की कोशिश की जा रही है। इसके साथ ही खतरे के मद्देनजर अन्य राज्यों को अलर्ट जारी कर दिया गया है।

जीका वायरस खतरनाक साबित हो सकता

मच्छरजनित जीका वायरस लापरवाही के कारण खतरनाक भी हो सकता है। यहां बता दें कि साल 1947 में युगांडा में सबसे पहले जीका वायरस की पहचान की गई थी। यह छोटे बच्चों के लिए कभी-कभार खतरनाक हो जाता है। सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के विशेषज्ञ मानते हैं कि  मच्छरों के काटने से बचने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। गर्भवती महिलाओं को इस रोग से बचाने की जरूरत है, क्योंकि  इससे बच्चे भी पीड़ित आने का खतरा बराबर बना रहता है।

जीका वायरस कैसे फैलता

जीका एक मच्छर जनित यानी मॉस्किटो बॉर्न वायरस होता है। डॉक्टरों के अनुसार, यह वायरस डेंगू बुखार, पीला बुखार और वेस्ट नाइल के ही जैसा होता है। वैज्ञानिक भाषा में कहे तो यह वायरस माइक्रोसेफली यानी बर्थ डिफेक्ट से संबंधित है। सबसे अधिक खतरा गर्भवती महिलाओं को होता है। अगर कोई गर्भवती महिला जीका से संक्रमित है तो उसके पैदा होने वाले बच्चों को भी यह वायरस प्रभावित कर सकता है। जीका वायरस एडीज मच्छर काटने से फैलता है।

जीका वायरस के लक्षण

जीका वायरस रोग को गंभीर नहीं माना जाता है,लेकिन इससे मरीज परेशान जरूर हो जाती है। बुखार आदि के लक्षण इस बीमारी में पाए जाते हैं। ज्यादातर मरीज दवाइयों से ठीक हो जाते हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत नहीं पड़ती है।

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