कहां से शुरू हुई थी विवाह की परंपरा, जानें शादी कैसे बना अटूट-बंधन
विवाह एक सामाजिक और धार्मिक संस्कार है जिसके माध्यम से दो व्यक्तियों को एक साथ बांधा जाता है जो एक दूसरे से प्यार और समर्पण के साथ एक साथ जीवन व्यतीत करते हैं। विवाह एक विशेष रूप से संबंध बनाने की प्रक्रिया होती है जो धार्मिक और सामाजिक आधारों पर आधारित होती है।वहीं विवाह के लिए विभिन्न धर्म और संस्कृतियों में अलग-अलग रीति-रिवाज होते हैं, लेकिन इसके बावजूद इसका मुख्य उद्देश्य दो व्यक्तियों को एक साथ जीवन भर के लिए बांधना होता है।विवाह एक अटूट बंधन होता है जो समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह समाज में स्थिरता और अनुशासन की भावना को बढ़ाता है और दो व्यक्तियों को एक साथ जीवन के हर पहलू पर साथ रहने की शक्ति प्रदान करता है।
कैसा हुई विवाह की शुरुआत
शुरुआत में विवाह जैसा कुछ नहीं हुआ करता था। स्त्री और पुरुष दोनों की स्वतंत्र रहा करते थे। पहले के समय में कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री को पकड़कर ले जाया करता था। इस संबंध में महाभारत में एक कथा मिलती गै। एक बार उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ऋषि अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी वहां एक अन्य ऋण आए और उनकी माता को उठाकर ले गए। ये सब देखकर श्वेत ऋषि को बहुत गुस्सा आया। उसके पिता ने उन्हें समझाया की प्राचीन काल से यहीं नियम चलता आ रहा है। उन्होंने आगे कहा कि संसार में सभी महिलाएं इस नियम के अधीन है।
श्वेत ऋषि ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह तो पाशविक प्रवृत्ति है यानी जानवरों की तरह जीवन जीने के समान है। इसके बाद उन्होंने विवाह का नियम बनाया। उन्होंने कहा कि जो स्त्री विवाह बंधन में बंधने के बाद दूसरे पुरुष के पास जाती है तो उन्हें गर्भ हत्या करने जितना पाप लगेगा। इसके अलावा जो पुरुष अपनी पत्नी को छोड़कर किसी दूसरी महिला के पास जाएगा उसे भी इस पाप का परिणाम भोगना होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि विवाह बंधन में बंधने के बाद स्त्री और पुरुष अपनी गृहस्थी को मिलकर चलाएंगे। उन्होने ही यह मर्यादा तय कर दी कि पति के रहते हुए कोई स्त्री उसकी आज्ञा के विरुद्ध अन्य पुरुष के साथ संबंध नहीं बना सकती है।
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